शनिवार, जुलाई 31, 2010

गडचिरोली में ये क्या हो रहा है ...

रद्द हुआ आबा का गड़चिरोली दौरा!
संजय स्वदेश
नागपुर।
महाराष्ट्र का सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जिला गड़चिरोली में इन दिनों काफी कुछ चल रहा है। यहां की गतिविधियों से राज्य सरकार पूरी तरह से भयभित है। पिछले दिनों नक्सली नेता आजाद की पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद गड़चिरोली जिले में सक्रिय खूंखार नक्सलियों की घातक गतिविधियों को देखते हुए राज्य के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल 'आबाÓ का गड़चिरोली दौरा रद्द हो गया। आबा 29 जुलाई को गड़चिरोली के दौरे पर आने वाले थे। उनकी अध्यक्षता में जिला नियोजन समिति की बैठक का आयोजन किया गया था। आर.आर. पाटिल गड़ïचिरोली के पालकमंत्री भी हैं।
खूंखार नक्सली नेता आजाद की आंध्र पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत के बाद से ही गड़चिरोली जबर्दस्त गुस्से में हैं। वे अपने बड़े नेता की मौत का बदला लेने का ऐलान भी कर चुके हैं। बड़े नेता के बदले में नक्सलियों के निशाने पर कोई बड़ा नेता ही होने की भनक लगने के बाद खुफिया एजेंसियों के अधिकारी सतर्क हो गए। आर.आर. पाटिल के गड़चिरोली जिला दौरे की घोषणा पहले ही हो गई थी और बताया जाता है कि नक्सलियों ने पाटिल के दौरे में बाधा पहुंचाने की तैयारी भी शुरू कर दी थी। इसकी भनक लगने के बाद ही सतर्क हुई खुफिया एजेंसियों ने फिलहाल पाटिल को गड़चिरोली का दौरा नहीं करने की सलाह दी। ज्ञात हो कि आजाद की मौत के बाद से आबा पिछले दिनों विदर्भ में आए थे, लेकिन गड़चिरोली न जाकर यवतमाल से ही वापस मुंबई चले गए थे। अब ताजा घटनाक्रम के तहत आबा का गड़चिरोली दौरा रद्द हो चुका है। आबा जब पिछली बार गड़चिरोली आए थे तब उनकी कार के सामने अचानक आए युवकों ने पुलिस भर्ती में हुए भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हुए 'नक्सलवाद जिंदाबादÓ के नारे लगाए थे। उस घटना को सरकार ने गंभीरता से लेकर जांच शुरू की थी। नक्सल सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल में सक्रिय नक्सली तब तक शांत नहीं बैठेंगे जब तक वे आजाद की मौत के बदले किसी बड़े नेता को निशाना नहीं बनाते। नक्सलियों की लिस्ट पर नक्सलग्रस्त राज्यों के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, गृहमंत्री होने की जानकारी मिली है। हाल ही में खबर आई थी कि नक्सलियों ने नागपुर का उपयोग उपचार-हब तथा आवागमन के लिए करना शुरू कर दिया है। इस दृष्टि से बड़े नेताओं के नागपुर दौरे के दौरान भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रखने के निर्देश खुफिया एजेंसियों ने पुलिस को दिए हैं।
माओवादियों ने फूंकी भाड़भिड़ी ग्रामपंचायत
नक्सलियों ने 28 जुलाई की रात चामोर्शी तहसील के भाड़भिड़ी स्थित ग्रामपंचायत कार्यालय को आग के हवाले कर दिया। नक्सलियों के इस वर्ष के शहीद सप्ताह में यह पहली विध्वसंक घटना बताई जा रही है। पुलिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार 20 से 25 की संख्या में आये बंदूकधारी नक्सलियों ने भाड़भिड़ी गांव में प्रवेश किया तथा ग्रामपंचायत कार्यालय में जाकर सारे कार्यालय को आग के हवाले कर दिया। इस आगजनी की घटना में कार्यालय में रखा फर्निचर समेत सारे दस्तावेज जलकर खाक हो गये। घटना को अंजाम देने के बाद सभी नक्सली लाल सलाम के नारे लगाते हुए पर्चे फेंककर वहां से फरार हो गये। इस घटना से भाड़भिड़ी गांव के लोगों में खासी दहशत बनी हुई है। पुलिस ने इस मामले में अज्ञात नक्सलियों के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया है। विशेष अभियान के दलों को नक्सल खोज मुहिम के लिये रवाना करने के आदेश दिये गये है। शहीद सप्ताह के दौरान जिले के लोगों में खासी दहशत होकर पुलिस विभाग ने लोगों से सहयोग करने की अपील की है।
अनेक स्थानों पर बनाये स्मारक

28 जुलाई से नक्सल संगठनों की ओर से शहीद सप्ताह मनाया जा रहा है। इस सप्ताह के दौरान नक्सलियों ने जिले के अनेक स्थानों पर शहीद स्मारक बनाये हैं। कोरची तहसील के मसेली, धानोरा तहसील के अतिदुर्गम गांवों से लेकर सिरोंचा तहसील के बामणी गांव में नक्सलियों ने यह स्मारक बनाये है। धानोरा के किसी सुदुर गांव में नक्सलियों ने पुलिस मुठभेड़ में मारा गया आजाद का पुतला भी बनाया है। जगह-जगह पर्चें व बैनर फेंककर नक्सलियों ने शहीद सप्ताह को मनाने व सरकार के ऑपरेशन ग्रीन हंट को तत्काल बंद करने की मांग की है। सिरोंचा तहसील के कंबालपेठा सड़क पर नक्सलियों ने पेड़ काटकर बिछाये है। यहां पर लोगों ने वायरों के बंडल को भी देखा है।
सैकड़ों गांवों में छाया सन्नाटा
नक्सली नेता चारू मुजूमदार की स्मृति में शुरू हुआ नक्सली शहीद सप्ताह इन दिनों पूरी तरह दहशत के साये में बीता। जिले के अतिदुर्गम क्षेत्र में बसे दर्जनों गांवों में सन्नाटा छाया रहा। धानोरा व कोरची तहसील मुख्यालयों में भी स्थानीय नागरिक खौफ में है। नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों ने नक्सल आंदोलन के नेता आजाद और चारु मजमूदार के नाम के स्मारक बनाकर उन्हें अपनी श्रध्दांजलि दे रहे हैं। कोरची के मसेली गांव में नक्सलियों ने लाल आतंक का झंडा लहराकर लोगों से यह सप्ताह मनाने का आह्वान किया। पुलिस विभाग ने इस बीच सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात किये थे। जिसके चलते अब तक कोई अप्रिय घटना सामने नहीं आई है। विशेष सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले की धानोरा व कोरची तहसील को इस वर्ष नक्सलियों ने अपना केंद्रबिन्दु बनाया है। शहीद सप्ताह की सर्वाधिक हरकतें इन्हीं तहसीलों में देखी जा रही हैं। धानोरा, कोरची, कसनसुर, मसेली समेत वनांचल के अनेक गांवों में बंद रखा गया है। अनेक सड़कों पर पेड़ काटकर बिछाने से यातायात बाधित किया गया है। शहीद सप्ताह शुरू होने के एक दिन पूर्व ही जिले की धानोरा तहसील के मुरूमगांव के पास गढ़चिरोली-राजनांदगांव महामार्ग पर पेड़ काटकर बिछाये हैं। आज भी यह पेड़ यथावत हंै। घटनास्थल पर लोगों ने वायर के बंडल भी देखे हंै। जिसके चलते लोगों में खासी दहशत है। इस महामार्ग का यातायात पूरी तरह ठप पड़ गया है। उल्लेखनीय है कि यह महामार्ग जिले का एकमात्र अंतर्राज्यीय महामार्ग है। गढ़चिरोली-मानपुर बस गुरुवार को सुबह धानोरा से ही लौट जाने की खबर मिली है। तहसील मुख्यालय में अनेक निजी वाहन बंद के चलते खड़े हैं।
वहीं जगह-जगह पर्चे व बैनर लगाने से लोगों में खासी दहशत बनी हुई है। इस बंद के चलते जिले के गढ़चिरोली व अहेरी बस डिपो की अनेक बस फेरियां बंद हैं। इसमें प्रमुख रूप से गढ़चिरोली-राजनांदगांव, गढ़चिरोली-मानपुर, मुरूमगांव, पेंढरी, भामरागढ़, एटापल्ली व अन्य अतिदुर्गम गांवों में जाने वाली बसों की फेरियां हैं। गुरुवार को धानोरा की सारी दुकाने शत प्रतिशत बंद होने के कारण स्थानीय लोगों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। सप्ताह के मद्देनजर पुलिस विभाग ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात कर रखे हंै। सीआरपीएफ के साथ सी-60 जवानों की तैनाती बढ़ा दी गई है। पर जनता पर सुरक्षा से ज्यादा नक्सलियों का खौफ भारी पड़ रहा है।
आरमोरी में निकली शांति रैली
शहीद सप्ताह के विरोध में आरमोरी पुलिस थाना की ओर से नक्सल विरोधी शांति रैली निकाली गई। थानेदार माने ने इस रैली को हरी झंडी दिखाकर रैली का शुभारंभ किया। यह रैली शहर की मुख्य सड़कों से होते हुए वापस पुलिस थाना पहुंची। इस समय अपने मार्गदर्शन में थानेदार माने ने कहा कि हर वर्ष की तरह इस बार भी नक्सलियों ने 28 जुलाई से 3 अगस्त की कालावधि में शहीद सप्ताह मनाने का आह्वान किया है। उन्होंने इस सप्ताह में लोगों से पुलिस को सहयोग करने की अपील की। शांति रैली में आरमोरी के महात्मा गांधी विद्यालय, महात्मा गांधी कन्या विद्यालय, डा. आंबेडकर विद्यालय, हितकारिणी विद्यालय, किसनराव खोब्रागडे महाविद्यालय, विवेकानंद विद्यालय आदि शालाओं के छात्र, प्रधानाचार्य, शिक्षक व शहर के नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
17 अगस्त को मशाल मोर्चा
जिले में बिजली का उपयोग कम होने के बाद भी विगत 9 वर्षों से यहां लोडशेडिंग शुरू है। यह लोडशेडिंग पूरी तरह बंद करने की मांग को लेकर गढ़चिरोली के महावितरण कंपनी के अधीक्षक अभियंता कार्यालय पर आगामी 17 अगस्त को मशाल मोर्चा निकाला जाएगा। जिला परिषद के पूर्व सदस्य सुरेंद्रसिंह चंदेल व अन्य पदाधिकारियों ने बताया कि जिले में शुरू लोडशेडिंग के कारण यहां की सर्वसाधारण जनता, छोटे उद्योजक व किसानों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले की लोड़शेडिंग को बंद करने के लिये अनेक बार आंदोलन व मोर्चे निकाले गये। लेकिन मंत्रियों के आश्वासन केवल आश्वासन ही रहें। लोडशेडिंग शुरू होने के बावजूद घरेलु उपयोग की बिजली के अधिक बिल भेजे जा रहे हैं।
बदहाली में आदिवासी आश्रम
एकात्मिक आदिवासी विकास प्रकल्प गढ़चिरोली के अंतर्गत आने वाली सरकारी आश्रमशालाओं की हालत फिलहाल पूरी तरह खस्ता हो चली है। आश्रमशाला चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संगठन ने आमशालाओं का दर्जा बढ़ाने की मांग की है।
गत 26 जून से शैक्षणिक सत्र आरंभ हुआ। लेकिन प्रकल्प के तहत आने वाली अनेक आश्रमशालाओं में अब तक शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है। यह पद भरने की मांग भी कई बार की है। लेकिन इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सरकारी छात्रावास का भोजन बंद होने के कारण छात्रावास अब तक आरंभ ही नहीं हुए है। जिसके चलते स्कूली छात्रों की संख्या कम हो रहीं है। आश्रमशालाओं को किराणा व अन्य खाद्यान्न की आपूर्ति करने के आदेश अब तक जारी नहीं करने से आश्रमशालाओं की अवस्था दयनीय हो गई है। शैक्षणिक सत्र को आरंभ हुए एक माह का कालावधि बीत चुका है, लेकिन शिक्षा आरंभ नहीं होने से आदिवासी छात्रों का बड़े पैमाने पर शैक्षणिक नुकसान हो रहा है।

शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

बार-बार शरीर संबंध बलात्कार नहीं

मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ का महत्वपूर्ण फैसलानागपुर। किसी महिला या युवती से बार-बार शरीर संबंध रखना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। यह महत्वपूर्ण फैसला मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के न्यायाधीश अंबादास जोशी ने दिया है। न्यायमूर्ति जोशी की खंडपीठ ने एक मेडिकल रिप्रजेटेटिव अनवर खान इकबाल खान मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी दृष्टिकोण से विचार किया गया तो भी गलतफहमी के विश्वास से ऐसा होना साबित नहीं होता। 2 वर्षों तक लगातार शरीर संबंध रखने की अनुमति देना बलात्कार साबित नहीं होता।
ज्ञात हो कि न्यायमूर्ति जोशी ने कुछ दिनों पूर्व ही ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला दिया था कि शादी का लालच देकर तथा उस पर यकीन रखकर शरीर संबंध रखना बलात्कार नहीं होता। उसके बाद उनका यह दूसरा ऐसा फैसला है, जिससे आईपीसी की धारा 376 के मामले में फंसे अनेक लोगों को राहत की संभावना दिखने लगी है। ब्लात्कार के दर्ज सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिसमें आपसी सहमती से शारीरीक संबंध बनाये गए थे और बाद में किसी बात को लेकर अनबन होने से कत्थित पीडि़ता ने बलात्कार का मामला दर्ज कराया।

अनवर खान इकबाल खान को नागपुर सत्र न्यायालय ने एक युवती के साथ लगातार कुकर्म के मामले में 2 वर्ष पूर्व 7 वर्षों के सश्रम कारावास व 20 हजार रु. जुर्माने की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने इस फैसले को बदल दिया। अनवर खान ने 14 अप्रैल से 5 मई 2004 के दौरान शादी का लालच दिखाकर युवती के साथ शरीर सुख प्राप्त किया था।
अनवर खान तथा युवती एक ही कंपनी में कार्यरत थे। आरोपी ने नागपुर की एक होटल में स्थित अपने कमरे में युवती को बुलाया तथा उसके साथ कुकर्म किया। इस घटना से युवती रोने लगी। उसने आत्महत्या करने की धमकी दी। इसे देखकर अनवर खान ने उसे शादी का लालच दिखाकर शांत किया। बाद में अनवर ने युवती को अमरावती व यवतमाल की होटलों में बुलाया तथा वहां भी शादी का लालच देकर उसके साथ यौन संबंध बनाया। आरोपी द्वारा शादी से इन्कार करने तक यह मामला जारी था।
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता युवती पागल हो चुकी थी तथा वह आरोपी के पीछे पड़ गई थी। यह सभी एक पक्ष से ही हो रहा था। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए बचाव पक्ष ने बताया कि शादी के आश्वासन पर भरोसा रखकर युवती ने शरीर संबंध रखने की अनुमति दी। इसे गलतफहमी से दी गई अनुमति नहीं कहा जा सकता।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने कहा कि युवती स्वयंनिर्बंध तथा आत्मज्ञान से अनभिज्ञ थी और इसी कारण शादी के आश्वासन पर यकीन रखकर वह लैंगिक सुख देती रही। वह सज्ञान है। खासकर उसकी इस बात पर यकीन नहीं किया जा सकता कि गर्भपात के बाद भी उसके साथ दो बार बलात्कार हुआ।
वर्ष 2009 के अंत में भी सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जिसमें कोर्ट ने बलात्कार के मामले में दोषी ठहरा चुके सुनील कुमार नाम के एक युवक को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि कौमार्य भंग कराते वक्त लड़की ने इसका विरोध नहीं किया था, इसलिए वह बलात्कार की पीडि़ता नहीं है।

अन्य व औषधि प्रशासन विभाग की सुस्ती से मिलावटखोर बेखौफ

-एक साल में 100 से भी कम मामले दर्ज
संजय स्वदेश
नागपुर।
बढ़ती महंगाई के कारण कई व्यापारी मिलावट का धंधा कर रहे हैं। इसके अलावा बरसात के कारण बाजार में बिकने वाले कई खाद्य पदार्थ अंदर से खराब हो जाने के बाद भी धड़ल्ले से बिक रहे हैं, जिसे जाने-अनाजने में खाकर लोग बीमार हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मिलावटखोरी पर नियंत्रण करने वाला विभाग अन्न व औषधि प्रशासन सुस्त दिख रहा है। इसकी सुस्ती से मिलावटखोर बेखौफ होकर मिलावट का धंधा कर रहे हैं। विभाग के सह आयुक्त कार्यालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नागपुर शहर और जिले में मिलावटखोरी पर नजर रखने के लिए 12 निरीक्षक, एक पर्यवेक्षक और एक सहायक आयुक्त हैं। लेकिन विभाग औसतन हर दिन एक भी नमूने नहीं ले पाता है। विभाग के पर्यावेक्षक सं.भा. नारागुडे से प्राप्त जानकारी के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2009-10 में विभाग ने 1178 नमूने जांच के लिए भेजे, इनमें से महज 146 ही अप्रमाणित मिले। उसमें से भी केवल आधे मामले ही दर्ज हुए। बीते वर्ष के इस आंकड़े से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विभाग नगर में चल रहे खाद्य पदार्थों की मिलावट को लेकर कितना सक्रिय है। यदि 12 निरीक्षकों में हर निरीक्षक हर दिन दो नमूने भी लेते हैं, तो एक दिन में 24 नमूने विभिन्न इलाकों में बिकने वाले खाद्य पदार्थों के लिए जा सकते हैं। इससे मिलावटखोरों में भय बैठेगा और वे मिलावटखोरी छोड़ सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि साल में विभाग जितने सैंपल लेकर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजता उसमें से आधे से भी कम सौंपल की रिपोर्ट अप्रमाणित आती है। अधिकतर मामलों में कुछ ले-देकर मामला दबा देने का प्रयास किया जाता है। यदि विभाग में बात नहीं बनती है तो प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों से संपर्क साधकर मतलब का काम करा लिया जाता है।
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कई बार वे स्वयं संज्ञान लेकर सैंपल लेने के लिए छापा मारते हैं, तो कुछ शिकायतों पर संज्ञान लेकर छापामारने की कार्रवाई चलती है। लेकिन जितनी भी शिकायतें आती हैं, उसनें से करीब 80 प्रतिशत शिकायतें पूर्वाग्रह से प्रेरित होती हैं। लोग किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए मिलाटवखोरी की झूठी शिकायत कर देते हैं।

गुरुवार, जुलाई 29, 2010

कई टीवी चैनलों पर जारी है लूटखसोट

नहीं थम रहा लूटपाट का सिलसिला
विशेष प्रतिनिधि
नागपुर। यदि आप रात के समय बोर भी हो रहे हों तो टीवी मत देखिये। आपने रात के समय अपना लोकप्रिय चैनल शुरू कर लिया तो लालच के जाल में पड़कर आप सैकड़ों रुपयों से हाथ धो सकते हैं। इन दिनों रात 12 बजते ही अधिकांश टीवी चैनलों पर चेहरा पहचानो प्रतियोगिता शुरू हो जाती है। पहले केवल एक चेहरा ही दिया जाता था अब चेहरा दो लोगों का जोड़कर दिखाय जा रहा है। इंडिया टीवी, जी टीवी, इमैजिन टीवी आदि तमाम चैनलों पर यही गोरखधंधा चल रहा है।
जाने-पहचाने चेहरे होने के कारण लाखों लोगों के फोन लगाने पर भी सही जवाब नहीं मिलता है क्योंकि लूटखसोट वाले इस कार्यक्रम का संचालक केवल 'अपनेÓ ही लोगों के फोन उठाता है और इस बात की 200 प्रतिशत गारंटी होती है कि जिसने भी फोन किया वह गलत जवाब ही देगा। सबसे खास बात यह है कि अन्य लोगों के फोन घंटों रिसीव ही नहीं किए जाते और उनके फोन से प्रति मिनट 10 रुपये कटते रहते हैं। लालच में पड़कर लोग अपने नंबर का इंतजार करते रहते हैंï और उन्हें उस समय घोर निराशा हो जाती है जब 200-250 रुपये की चोट खाने के बाद फोन अपने आप डिस्कनेक्ट हो जाता है। लालची व्यक्ति बार-बार यही प्रयोग करता है और सैकड़ों रुपये लुटा बैठता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पिछले कई माह से टीवी चैनलों पर जारी इस अनोखे खेल में आयोजक करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। 5000 रु. के इनाम से शुरुआत कर इनामी राशि 80 हजार तक बढ़ती चली जाती है लेकिन भारतभर में पूरे 2 घंटे के इस खेल में कोई माई का लाल ऐसा नहीं है जो सही जवाब दे सके। देगा भी कैसे? जिन लोगों के मोबाइल से पैसे कटने होते हैं, उनका फोन रिसीव ही नहीं किया जाता! पूरी तरह लूटपाट वाले इस खेल पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है। चैनल वाले एक पट्टïी चलाकर साफ-साफ कह देते हैं कि उनका इस खेल से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें 2 घंटों के लिए लाखों रुपये मिल जाते हैं। इस खेल में आयोजक, चैनल वाले तथा मोबाइल कंपनियां मालामाल हो रही हैं जबकि नागपुर ही क्या पूरे विदर्भ या महाराष्ट्र में ऐसा कोई बंदा नहीं है जिसने इस खेल में 10 रु. भी जीते हो। या तो सरकार इस पर पाबंदी लगाए या फिर दर्शक रात के समय चैनल देखना ही बंद कर दें।

बुधवार, जुलाई 28, 2010

हार्डवेयर में शोध की जरूरत : डा. जोशी


नागपुर। भारत सॉफ्टवेअर की दुनिया में आगे हैं। अब हार्डवेयर में संशोधन की जरूरत है। यह कहना है कि पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी का। वे नागपुर में रामदेव बाबा कमला नेहरू अभियंात्रिकी महाविद्यालय में आइटी कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन के मौके पर अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे। कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत, महापौर अर्चना डेहनकर, पूर्व विधायक तथा संस्था अध्यक्ष बनवारीलाल पुरोहित आदि उपस्थित थे।
डा. जोशी ने कहा कि हार्डवेयर के बिना आइटी का कोई महत्त्व नहीं। इन उपकरणों को आयात करना पड़ता है। इस लिए इस क्षेत्र में शोध कर देश में ही इनके उत्पाद बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रबंधन संस्थाएं देश के बड़े संस्थाओं के लिए एकाऊंटेंट, मार्केटिंग अधिकारी तैयार कर रही हैं। जल, बिजली, शिक्षा, यातायात तथा किसान को टेक्नालॉजी का कुछ फायदा नहीं मिल रहा है। इसके लिए पश्चिमी देशों का अनुकरण नहीं करना चाहिए। 250 वर्ष पहले भारत अच्छा स्टिल भेजता था। आज लेजर ब्लेड भी बाहर से आयत करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि आप नकल करोगे तो कभी आगे नहीं बढ़ोगे। जो आएगा वह पश्चिम से आएगा यह बुनियादी बात हो गई हैं। उसे बदलना जरूरी है। हमें अपने मस्तिष्क को सतत चलाते रहना चाहिए। आज अपनी परंपरा, अपनी छाप, अपनी धरती ध्वस्त हो रही है।
शिक्षा में डोनेशन अच्छा नहीं : गडकरी
नितिन गडकरी ने कहा कि देश के विकास के लिए रिसर्च और टेक्रालॉजी की आवयश्कता है। कई जगह पर पानी के एक बुंद के लिए लोग तरस रहे हैं, तो कहीं बाढ़ से गांव के गांव उजड़ रहे हैं। अगर तकनीक का बेहतर उपयोग हो तो बहकर जाने वाले पानी का सही इस्तेमाला किया जा सकता है। इसलिए पानी, बिजली पर रिचर्स होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि आज शिक्षा का व्यापारीकरण किया जा रहा है। उनके गुणवत्ता से कोई लेना देना नहीं। गरीब के प्रति भावना रखनी चाहिए। तांत्रिक दृष्टी से एक यशस्वी आदमी तो मिलेगा लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं। शिक्षा के लिए डोनेशन अच्छी बात नहीं है। यह कदापि नहीं होना चाहिए। डोनेशन नहीं लेकर गुणवत्ता के आधार पर रामदेवबाबा कॉलेज में प्रवेश मिलने से ही यहां के विद्यार्थी गौरव प्राप्त कर रहे हैं।
केवल पढऩे-लिखने से काम नहीं : भागवत
डा. मोहन भागवत ने कहा कि केवल सुनने से कोई काम नहीं होता, उसके लिए करना पड़ता है। करने वाले का काम होता है, नाम होता है। कार्बेन को कुछ साल दबाया गया तो वह सिलोकॉन बन जाता है, यह प्राकृति का नियम है। परंतु भारत को कितना भी दबा कर रखा गया फिर की सिलोकॉन नहीं बनेगा। हम शुरू करेंगे, यह संकल्प लेना चाहिए। केवल पढ़ा - लिखा होकर कुछ उपयोग नहीं, लोगों को उसका फायदा होना चाहिए। समाज तथा राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहिए।
कार्यक्रम के शुभारंभ से पूर्व आईटी कॉप्लेक्स के आर्किटेक्ट डा. डोंगरे का भागवत तथा सिविल कॉन्ट्रेक्टर डी.आर.मालजी का डॉ. मुरली मनोहर जोशी के हाथों सत्कार किया गया। डा. जोशी, डा.भागवत, नितीन गडकरी, महापौर अर्चना डेहनकर का संस्था की ओर से शाल, श्रीफल व स्मृतिचिन्ह देकर सत्कार किया गया। प्रास्ताविक भाषण संस्था अध्यक्ष बनवारीलाल पुरोहित ने दिया। उन्होंने बताया कि उदयोन्मुख संस्थाओं महाराष्ट्र में पहली तथा देश में चौथे नंबर पर यह संस्था है। इस वर्ष संस्था ने 25 वर्ष पूरे किए है। संस्था में मेरिट के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। प्रबंधन कोटा भी डोनेशन से नहीं, गुणवत्ता के आधार पर भरा जाता है। कार्यक्रम में पूर्व विधायक तथा वनराई के अध्यक्ष गिरीश गांधी, पूर्व सरसंघचालक के.सी. सुदर्शन, पूर्व महापौर माया इवनाते
संस्था के उपाध्यक्ष गंगाराम अग्रवाल, उपाध्यक्ष चंद्रकांत ठाकर, संस्था सचिव गोविंद अग्रवाल, प्राचार्य देशपांडे, दामोदर भूतडा तथा शहर के गणमान्य नागरिक, संस्था के कर्मचारी, शिक्षकगण तथा बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रा. पाचपोर ने किया। विश्वास देशपांडे के आभार प्रदर्शन के बाद कार्यक्रम का सामपन हुआ।
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सोमवार, जुलाई 26, 2010

दोषियों की सजा बदलने से दलितों पर अत्याचार बढ़ा


खैरलांजी प्रकरण /भैयालाल भोतमांगे की जमीन हथियाने की कोशिश
आधा दर्जन संगठनों ने किया प्रदर्शन, सरकार को भेजा ज्ञापन


संजय स्वदेश
नागपुर।
खैरलांजी हत्याकांड में दोषियों की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदलने का विरोध अभी भी जारी है। सोमवार को रिजर्व बैंक चौक पर आधे दर्जन से भी ज्यादा संगठनों ने इस निर्णय के विरोध में प्रदर्शन किया। दीक्षाभूमि महिला धम्म संयोजन समिति, राष्ट्रीय संबुद्ध महिला संगठन, ऑल इंडिया प्रोगे्रसिव वूमेेन्स ऑर्गनाइजेशन, संजीवनी सखी मंच, जरीपटका, दलित महिला संघ, गौतमी महिला मंडल, नालंदा महिला मंडल, रमाबाई आंबेडकर महिला संगठन कोराड़ी आदि संगठन के कार्यकर्ताओं ने चौक पर धरना देते हुए फैसले के विरोध में नारेबाजी की। उनका कहना था कि इस प्रकरण में फांसी की सजा बदलने के बाद दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं। उनकी मांग है कि दोषियों की फांसी की सजा कायम रहे। मुकदमे की सुनवाई के लिए एक स्वतंत्र न्यायालय का गठन किया जाए। सीबीआई इस मामले की फिर से जांच करे और मामले में विनयभंग और अॅट्रॉसिटी एक्ट भी दर्ज किया जाए। इन संगठनों ने अपनी मांगों की प्रति राज्य के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल और केंद्रीय न्यायमंत्री मुकुल वासनिक को भेजी है।
ज्ञापन में कहा गया है कि खैरलांजी प्रकरण से यह सिद्ध हो गया है कि देश की जातिवादी सामाजिक मानसिकता में पीडि़त दलित को न्याय नहीं मिल सकता है। इस प्रकरण में भोतमांगे परिवार के चार सदस्यों की निर्मम हत्या के दोषियों की फांसी की सजा में दलित और बौद्ध समाज में यह आस जगी थी कि उन्हें भी न्याय मिल सकता है। लेकिन उच्च न्यायालय के निर्णय से यह आस भी टूट गई है। एक तरह से यह दलित और बौद्ध समाज को अप्रत्यक्ष धमकी है। यदि सरकार चाहे तो न्यायालय के निर्णय को भी बदल सकती है। आश्चर्य की बात यह है कि खैरलांजी प्रकरण इतना गंभीर हुआ, लेकिन राज्य सरकार ने इसमें गंभीरता नहीं दिखाई। दोषियों पर विनयभंग और अॅट्रॉसिटी एक्ट के मामले तक दर्ज नहीं किये गए।
ज्ञापन में कहा गया है कि खैरलांजी प्रकरण के इस निर्णय के बाद खैरलांजी गांव में दलितों पर अत्याचार बढ़ा है। भैयालाल भोतमांगे की जमीन कब्जा करने की कोशिश की गई। इसकी शिकायत जब भंडारा के पुलिस स्टेशन में की गई तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा जिस गांव में चार दतिलों की हत्या हुई, उस गांव को तंटामुक्त गांव का पुरस्कार दिया गया है। आरोपियों को फांसी की सजा बदलने से यह साबित हो गया है कि देश में दलितों पर हुए अत्याचार के मामले में न्याय नहीं मिल सकता है। संगठनों का कहना है कि यदि इस मामले में उन्हें उचित न्याय नहीं मिला तो वे सड़क पर उतर कर आंदोलन करेंगे।
प्रदर्शनकारियों में तक्षशील बाघमारे, छाया खोब्रागड़े, वंदना जीवने, सरोज आगलावे, प्रज्ञा बागड़े, डा. लता बाकोड़े, रेखा, खोब्रागड़े, अर्चना, शैला नांदेश्वर, शार्दुला महाजन, तोसी साखरकर, प्रतिमा, सरोज डांगे, कविता मेठे आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थीं।
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रविवार, जुलाई 25, 2010

भारत के मसालों की विदेशों में भारी मांग

नागपुर। नाग विदर्भ चेंबर ऑफ कॉमर्स तथा स्पायसेस बोर्ड, कोचीन के संयुक्त तत्वावधान में होटल तुली इंटरनेशनल सदर में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। उपस्थित अतिथियों, निर्यातकों तथा व्यापारियोंं का स्वागत करते हुए चेंबर के अध्यक्ष, हेमंत खुंगर ने कार्यशाला आयोजन करने का मुख्य उद्देश्य बताते हुए कहा कि भारत से विदेशों में मसालों की अति आवश्यकता है क्योंकि यहां के बने हुए मसालों जैसे मिर्ची, हल्दी व अन्य मसाले उत्कृष्ट रूप से उत्पादित किए जाते हैं, क्योंकि इन मसालों के उत्पादन के लिए प्राकृतिक तथा सेंद्रिय खादों का इस्तेमाल होने से उसकी गुणवत्ता श्रेष्ठ होती है। इन वस्तुओं को अधिक से अधिक मात्रा में निर्यात करने के लिए विदर्भ तथा मध्य भारत के व्यापारी तथा निर्यातकों को आगे आना चाहिए। उन्होंने अनुरोध किया कि निर्यात अधिक होगा तो व्यापार भी बढ़ेगा। इस कार्यशाला में विशेषकर विदर्भ व मध्य भारत से मसालों का निर्यात विदेशों में कैसे करना, उसकी जानकारी कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि, विवेक ज्योति राय, उपसंचालक, स्पायसेस बोर्ड, भारत सरकार, कोचीन ने उपस्थित सदस्यों को दी।
बिबेक राय ने कहा कि हल्दी एक ऐसी वस्तु है जो खाद्य पदार्थ भी है, औषधि भी है तथा मसाले के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है। देश में 42 प्रकार की हल्दी का उत्पादन होता है। हल्दी व कस्तुरी, उनके सुगंध से पहचानी ताजी है। वर्तमान में, भारत में इसका उत्पादन 5,55,455 मे.टन होता है, जिसमें से, महाराष्ट्र में इसका उत्पादन 8,280 मे.टन होता है। उसी प्रकार भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्यामार, चाइना, हैती, पेरु, सॉलिडोर, तायवान तथा जमायका में भी हल्दी का उत्पादन किया जाता है। पूरे विश्व स्तर पर केवल भारत में हल्दी का उत्पादन 70 प्रतिशत होता है। महाराष्ट्र में जिलों के अनुसार, नागपुर, वर्धा, चंद्रपुर, अमरावती, सातारा, सांगली, परभणी, नांदेड, कोल्हापुर व शोलापुर में हल्दी का उत्पादन किया जाता है।
मिर्ची के उत्पादन के बारे में उन्होंने कहा कि मिर्ची का उत्पादन भारत में आंध्र, कर्नाटक, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में प्रमुख रूप से होता है। भारत से इसका निर्यात विशेषकर बंाग्लादेश, पाकिस्तान तथा अन्य देशों में किया जाता है। दूसरे सत्र में वंदना शिवशरण ईसीजीसी नागपुर शाखा प्रमुख ने निर्यातकों को ईसीजीसी के उद्देश्य की जानकारी दी।कार्यक्रम में हेमंत खुंगर, मयूर पंचमतिया, प्रकाश वाधवानी, जगदीश बी.बंग, अजय कुमार मदान, प्रभाकर देशमुख, विजय केवलरामानी, फारुक अकबानी, निखिलेश ठाकर, राजू माखीजा, राजू व्यास, निलेश सूचक, सचिन पुनियानी, सतीश बंग, हस्तीमल कटारिया, योगेंद्रकुमार अग्रवाल, मनोहर भोजवानी, प्रकाश वाघमारे, प्रकाश कटारिया, यश भोजवानी, मोहनलाल पटेल, रवि आत्राम, शिरीष आया, पांडुरंग होजुक, मनोज वानखेडे, उमेश तालेकर, धवल पंचमतिया, रशीद अली सैयद, नेताई के राय, अमित चौधरी, निखिल जुनेजा, नितिन सोमकुंवर, कु.मोहिनी बेरी, मनीषा जोशी, संजय पटेल, बिहारी पटेल, संजय देसाई, विराल कोठारी, दीपक पारवानी उपस्थित थे। संचालन चेंबर के उपाध्यक्ष जगदीश वी.बंग ने किया तथा मयूर पंचमतिया, ने आभार प्रदर्शन किया। उक्त जानकारी चेंबर के सहसचिव अजयकुमार अदान ने दी है।

गुरुवार, जुलाई 22, 2010

...और 'फलां बो विकास की पहरुआ बन गईं


बिहार का बेड़ा पार लगाती महिलाएं
- संजय स्वदेश

कहते हैं कि राजनीति की चाबी से हर ताले खुलते हैं, परन्तु बिहार के समाज में महिलाओं को यह चाबी वर्षों से नहीं मिली थी। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के जाते-जाते करिश्मा हुआ। वर्ष 2001 में लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई, ग्राम पंचायत में आरक्षण के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करा दी गई। वर्ष 2006 में राज्य में कुल 8471 पंचायतों में 4200 पंचायतों पर महिलाओं ने कब्जा किया। बिहार के सिकुड़े समाज ने अंगड़ाई ली और पैर पसार दिए। अति पिछड़े वर्ग के लिए जहां राजनीति से जुडऩा कभी संभव नहीं था, उसे 20 प्रतिशत आरक्षण के माध्यम से संभव बनाया गया। महिलाओं को भी लाभ मिला। अति पिछड़े, दलितों में अलग-थलग रहने वाली महिलाओं को भी ग्रासरूट स्तर पर मुख्य धारा की राजनीति से जुडऩे का मौका मिला।
बिहार में धन और बाहुबल के दम पर संपन्न होने वाले हर चुनाव में ऐसी-ऐसी महिलाएं चुन कर पंचायत में आईं जो समाज में वर्षों से उपेक्षित थीं। समस्याओं के आगे महिलाओं ने साहस दिखाया। बम-बारूद वाले चुनावी समर में महिलाएं बहादुरी दिखाने से पीछे नहीं हटीं। अपराधियों के हमलों और परिजनों की हत्या के बावजूद डटी रहीं। चुनाव जीतकर विरोधियों को धूल चटाया। 4200 आरक्षित पदों के लिए दो लाख से अधिक महिलाएं चुनावी समर में थीं। चुनावी समर में अपनी मांग और कोख को सूनी करके भी महिलाओं ने फतह हासिल की। अपराधी तत्वों के नापाक इरादों से विचलित नहीं हुईं। सर्वेक्षण से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जुमई जिले के ठसलाम नगर पंचायत के मुखिया पद की उम्मीदवार उमा देवी के तीन बेटों की चुनाव के दौरान सामूहिक हत्या कर दी गई थी। बच्चों को खोने का दुख किस मां को नहीं होगा? परन्तु यही दुख शायद उमा देवी को साहस दे गया। उमा देवी दिलेरी से चुनाव लड़ीं और जीतीं भी। आतंक के साये में उमा देवी की दिलेरी ने दूसरी महिलाओं को साहसी बनाया। पूर्वी चंपारण जिले में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। एक महिला उम्मीदवार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। चुनाव में महिलाओं के हौसले पस्त करने की हर संभव कोशिश की गई, फिर भी महिलाएं डटी रहीं। करीब हर क्षेत्र में महिला उम्मीदवारों पर हिंसक हमले चुनाव के साथ-साथ बढ़ते ही गए, लेकिन अपने अधिकारों के लिए कटिबद्ध महिलाओं ने हार नहीं मानी। एक भी महिला किसी भी हिंसक घटना के कारण मैदान से नहीं हटी। हटी तभी जब खुद उन्हें जान से मार दिया गया। पूॢणया जिले में मीनपुर पंचायत की मुखिया उम्मीदवार जानकी देवी की चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई। यही नहीं, महिला मतदाताओं पर भी दबाव डालने की कोशिश नाकाम रही। पुरुष हमलावर खदेड़ दिए गए। महिलाओं का पंचायतों पर कब्जा हुआ। पुरुषों में चर्चा हुई- भले ही 'फलां बोÓ (किसी की पत्नी) चुनाव जीत गईं, लेकिन काम कैसे करेगी? बिहार के गांवों में सुबह और शाम की तस्वीरें राजनीतिक चर्चाओं का रंग लिए हुए थीं।
जहां पहले नुक्कड़ों और दुकानों पर सिर्फ आदमी ही पान चबाते, चाय-पीते और बहस करते हुए दिखाई देते थे, अब औरतें राजनीति पर चर्चा करने लगीं। देखते-देखते चार साल पूरे हो चुके हैं। पंचायत की महिलाएं पुरुषों के हर बिछाए जाल से निकल चुकी हैं। सूझ-बूझ से हर निर्णय ले रही हैं। देखते-देखते 'फलां बोÓ सरकार के विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की पहरुआ बन गईं। गोपालगंज जिले के हथुआ पंचायत की मुखिया प्रमिला देवी कहती हैं- जब चुन कर आई थीं तब शुरू-शुरू में पुरुष सदस्यों ने काफी भ्रम में डालने की कोशिश की। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दुकानदार केरोसिन, राशन आदि के वितरण में जमकर धांधली करते थे। बस कुछ ही महीनों में पंचायत का हर कार्य समझ लिया। महिलाओं को एकजुट कर जिलाधिकारी से इस मामले में बात की। परिणाम अच्छा आया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तीन लाइसेंस स्थगित कर दिये गए। उसके बाद से हर किसी को नियमित केरोसिन, अनाज आदि का वितरण हो रहा है। प्रमिला देवी कहती हैं कि ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो क्या हुआ। हर बात तो समझ में आती ही है। अब डर नहीं लगता है कि कोई उल्टी-सीधी बातें कह कर पंचायत में गलत काम करा लेगा।
कुछ इसी तरह की बात मधुबनी जिले के देवधा पंचायत की सरपंच सीता देवी करती हैं। सीता देवी का कहना है आरक्षण के कारण महिलाओं को पंचायत में आने का मौका मिला। नहीं तो पुरुष को ही पंचायत का चुनाव लडऩे का अधिकार था। शुरू में पंचायती कामकाज में पति का मार्गदर्शन मिला। अब हर निर्णय खुद लेती हैं। सीता देवी कहती हैं कि एक महिला, महिला की बात अच्छी तरह समझ सकती है। पहले पुरुष प्रधान पंचायत में महिलाएं किसी मामले में अपने पक्ष की बात संकोचवश ठीक से नहीं रख पाती थीं। महिलाओं की भागीदारी बढऩे से झगड़े के आपसी विवाद की जड़ तक जाने और असलियत को समझने के लिए महिला होने के नाते बात करना आसान होता है। समस्याएं जल्दी सुलझ जाती हैं।
राज्य के सबसे पिछड़े जिले मधेपुरा के खुरहान पंचायत की स्नातक पूर्व उप मुखिया गायत्री सिंह कहती हैं कि पटना में पढ़ाई की। गांव में शादी हुई तो लगा जिंदगी खत्म हो गई। लेकिन महिला आरक्षण से पंचायत में महिलाओं की सुनिश्चित भागीदारी की गई तो, लगा कुछ किया जा सकता है। पढ़ाई का उपयोग निर्धन महिलाओं के कल्याण में किया जा सकता है। सच में उप मुखिया का कार्यकाल बेहतरीन रहा। पुरुषों की तिकड़म समझ में आ चुकी है। अब कोई महिलाओं को पछाड़ नहीं सकता है।
अक्सर देखा गया है कि जिस घर में महिला मुखिया होती है, वहां बेटियों का हित ज्यादा सुरक्षित रहता है। उदाहरण के तौर पर पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदाय को देख सकते हैं। इ स लिहाज से महिला आरक्षण बेटियों में एक खास तरह के स्वाभिमान को जगाने का काम करने लगा है।
फिलहाल सबकी नजरें राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में हैं। तैयारी शुरू है। महिलाएं भी सक्रिय हो चुकी हैं। उन्हें विधानसभा चुनाव के बाद अगले वर्ष स्वयं पंचायत चुनाव के मैदान में उतरना है। जिन्हें विधानसभा में उतरना है, वे भी पंचायत स्तर पर सक्रिय महिलाओं से संपर्क साधने लगे हैं। उन्हें मालूम है अब वे दिन गए जब केवल धन और बाहुबल से विधानसभा पहुंचा जाता था। पंचायत में सक्रिय भागीदारी दिखा रही महिलाओं ने सूझ-बूझ से कार्य कर साबित कर दिया है कि उन्हें नकार कर अब कोई विधानसभा नहीं पहुंच सकता है। महिलाएं बिहार की विकास की योजनाओं पर निगरानी रख रही हैं। ढेरों उदाहरण हैं जिनसे साबित हो चुका है कि महिलाएं हाथ पकड़कर भ्रष्टाचारियों को रोककर फैसले अपने हक में करवा सकती हैं।

सोमवार, जुलाई 19, 2010

बैंकों ने तोड़ी आशियाने की आस

अधर में लटका राजीव गांधी आवास योजना-2
संजय स्वदेश
नागपुर।
ऐसा कई बार होता है जब सरकार देश की जनता के लिए कुछ ईमानदार पहल करती है, लेकिन बीच के बिचौलियों उस पहल का बेडागर्क कर देते हैं। महाराष्ट्र में हजारों गरीब परिवारों के लिए एक योजना चल रही है। योजना का नाम है राजीव गांधी आवास योजना-2। इस योजना के तहत 16 हजार से 90 हजार की वार्षिक आय वालों के लिए 90 हजार रुपये तक का कर्ज अपना आशियाना बनाने के लिए दिया जाता है। इस कर्ज का सारा ब्याज राज्य सरकार वहन करती है। कर्ज की मूल राशि लाभार्थी को जमा करनी पड़ती है। लेकिन विज्ञापन में दो से चार दिन में होम लोन देने के दावा करने वाले इस कर्ज को देने से कतराते हैं। महाराष्ट्र में इस योजना की हकीकत यह है कि विभिन्न सरकारी बैंक सरकार की ईमानदार मंशा पर पानी फेर रहे हैं। उनकी उदासिनता से यह योजना अधर में लटक गई है। नागपुर की स्थिति देखिये। सरकार ने इस योजना के तहत नागपुर में करीब 2900 लोगों के आवेदन मंजूर किये थे। लेकिन जब ये आवेदन बैंकों के पास गए तो उन्होंने किसी न किसी बहाने से इस योजना के तहत कर्ज देना टाल दिया। कई आवेदकों ने तो बैंक के चक्कर काटते-काटते अब इस योजना के लाभ पाने से निराश हो गये हैं। बैंकों ने इस योजना के तहत कर्ज देने के लिए आवेदकों पर ऐसी-ऐसी शर्त लगा दी कि लोगों को शर्त पूरा करना मुश्किल हो गया है। ऐसी स्थिति केवल नागपुर की ही नहीं है। पूरे महाराष्ट्र में इस योजना को सरकारी बैंक ऐसे ही कुठराघात कर रहे हैं। इस योजना की घोषणा राज्य सरकार ने कुछ महीने पहले ही की थी। तब यह कहा गया था कि 3 वर्ष में 10 लाख गरीब लोगों को अपना आवास उपलब्ध कराने के लिए कर्ज दिया जाएगा। इस योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए बैंकों के विभिन्न शर्तों को हटाने के लिए सरकार ने बैंकों को निर्देश भी दिया था। इस संबंध में एक सकुर्लर भी जारी हुआ था। पर बैंकों ने इस पर अमल नहीं किया है।
योजना से जुड़े नागपुर के उपअभियंता विनायक मामुलकर ने बताया कि वर्ष 2008-09 और 2009 और 2009-10 में 2966 लोगों को आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए बड़े पैमाने पर आवेदकों ने आवेदन दिया था। लक्ष्य के अनुसार 2966 लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए उनके आवेदन मंजूर कर बैंकों को भेज दिये गए। लेकिन बैंकों की शर्त पूरी नहीं करने के कारण अधिकर लोगों को इसका लाभ नहीं मिला। वहीं कुछ आवेदकों ने बैंक के लोन विभाग के साठगांठ से अपना कर्ज पा लिया। लेकिन अधिकतर लेकिन अधिकर आवेदक बैंक के शर्तों में फंस कर इस लाभ से वंचित हो गये हैं। महाराष्ट्र बैंक के एक अधिकारी ने नाम खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि सरकारी योजनाओं के तहत कर्ज देना बैंक के लिए घाटे का सौदा है। सबसे पहले तो बैंक से ब्याज पाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है। वहीं सीधे ग्रहकों से कर्ज की वसूली सीधे-सीधे हो जाती है। इसके अलावा बैंक भी कर्ज देने से पहले ऐसे आवेदकों की आर्थिक स्थिति अच्छी तरह से देखती है। बैंक को जब यह सुनिश्चित हो जाता है कि कर्ज लेने वाला इस योजना के तहत ब्याज माफ होने के बाद भी मूलधन चुकाने में सक्षम है, तब ही उनके कर्ज के आवेदन की मंजूरी दी जाती है। बैंक को इस योजना के तहत बहुत ज्यादा लाभ भी नहीं हो पता है। इसलिए सरकारी योजना के तहत कर्ज देने से हर बैंक हिचकते हैं।
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रविवार, जुलाई 18, 2010

महंगाई से जोर पकड़ा मिलावट का धंधा

तुअर दाल में जम कर हो रही है मिलावट
नागपुर।
बढ़ती महंगाई के कारण जहां आम आदमी की कमर टूट गई है, वहीं इससे मिलावटखोरों की चांदी ही चांदी है। वे अनेक वस्तुओं में मिलावट कर ग्राहकों से असली वस्तुओं के दाम वसूल कर मालामाल हो रहे हैं। आम लोग असली और नकली का फर्क नहीं समझ पा रहे हैं। आधुनिक तकनीक ने असली और नकली का भेद करना मुश्किल कर दिया है। इसी का लाभ मिलावटखोर उठा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो असली वस्तुओं का दाम देकर नकली वस्तुओं का सेवन करने वालों को न केवल धन की हानि हो रही है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी घातक असर पड़ रहा है। हालांकि इसका पता एकदम से नहीं चल पाता है, लेकिन नकली वस्तुओं के सेवन करने वाले विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।
दुकानों में विशेषकर राशन की दुकानों में यह काम धड़ल्ले से किया जा रहा है। बाजार में तुअर की दाल में बटरी, दाल और खेसाड़ी दाल मिलाकर धड़ल्ले से बेची जा रही है। कई दुकानदार वस्तुओं में मिलावट इस औसत से कर रहे हैं कि वह पकड़ी न जाए। वे नकली वस्तुओं की मिलावट असली से कम रख रहे हैं। जैसे उनकी मिलावट 30 से 40 प्रतिशत तक ही रह रही है। अच्छी क्वालिटी की दाल, चावल, गेहंू में आसानी से मिलावटी वस्तुओं को मिलाया जा रहा है।
मिलावटखोरी के बारे में अन्य एवं औषधि अन्वेषण विभाग का कहना है कि जो क्षेत्र हमारे दायरे में आते हैं, उन पर हमारी कड़ी निगरानी है। नागपुर के अधिकतर क्षेत्र महानगर पालिका के दायरे में आते हैं। इसलिए मिलावट का सैंपल लेना और मिलावटखोरी पकडऩे के लिए अभियान चलाने की जिम्मेदारी मनपा को है।
शहर के चिकित्सकों का कहना है कि उनके पास आने वाले मरीजों के लक्षण से पता चलता है कि वे मिलावटी वस्तुओं का सेवन कर रहे हैं। मानसून आने से 'फूड प्वाइजनिंगÓ की समस्या आम होती जा रही है।
पिछले दिनों एक समाजिक कार्यकर्ता ने राशन की दुकानों पर मिलने वाली तुअर दाल का नमूना प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजा था। परीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक तुअर दाल के सैंपल में 8 प्रतिशत की नमी, 16 प्रतिशत बटरी दाल, 32 प्रतिशत लाखोड़ी दाल व एक से दो प्रतिशत अन्य दालों की मिलावट मिली। रिपोर्ट से साबित हुआ कि नगर की राशन दुकानों में खरीदी करने वाले लोगों को केवल 43 प्रतिशत ही शुद्ध तुअर दाल मिल रही है। हाल में तेजी से बढ़ी महंगाई के कारण मिलावट का धंधा और बढ़ गया है।
कई कंपनियों ने महंगाई में राहत देने के लिए ग्राहकों में भ्रम बनाया है। पहले जितने रुपये में जितने वजन में वस्तुओं का पैकेट मिलता था। कंपनियों ने महंगाई के कारण भाव बढ़ाने के बजाय उसमें से मात्रा कम कर दी है। छोटे अक्षरों में पैकेट पर भी कम वजन लिखा होता है। लेकिन ग्राहक इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। वे पूर्व की कीमतों में ही वस्तुएं लेते हैं। लेकिन वे इस बात से अनजान रहते हैं कि उन्हें उतने रुपये में कम समान मिल रहा है।
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शनिवार, जुलाई 17, 2010

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

सुभद्राकुमारी चौहान
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी

वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़

महाराष्टर कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में
ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झांसी में
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छायी झांसी में
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी
किंतु कालगति चुपके चुपके काली घटा घेर लायी
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायी
रानी विधवा हुई, हाय विधि को भी नहीं दया आयी

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक समानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हर्षाया
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बिरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट फिरंगी की माया
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों बात
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात
उदैपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी रोयीं रनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार
नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान
बहिन छबीली ने रण चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी अंतरतम से आई थी
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी

जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी बढ़ी कालपी आयी, कर सौ मील निरंतर पार
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खायी रानी से हार
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

विजय मिली पर अंग्रेज़ों की, फिर सेना घिर आई थी
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय घिरी अब रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
सुभद्राकुमारी चौहान

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुष नहीं अवतारी थी
हमको जीवित करने आयी, बन स्वतंत्रता नारी थी

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी
यह तेरा बलिदान जगायेगा स्वतंत्रता अविनाशी
होये चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

शुक्रवार, जुलाई 16, 2010

दैनिक १८५७ में १६ जुलाई को प्रकाशित / ये देखो महगाई की चाल

बढ़ती महंगाई ने सबको झकझोरा

नागपुर। पिछले एक वर्ष में जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतें बड़ी तेजी से बढ़ी हैं। महंगाई की आग में हाल ही में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ी कीमतों ने घी डालने का काम किया है। इनकी कीमतें बढऩे से अन्य वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी दिखने लगी है। महंगाई जिस तेजी से बढ़ी है, उससे गरीब, मध्यम और उच्च वर्ग का बजट पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। दैनिक 1857 ने आज और ठीक एक साल पहले के जीवनावश्यक वस्तुओं पर एक नजर डाली, तो इसमें एक बहुत बड़ा अंतर नजर आया। चीनी, तेल, अरहर दाल, हल्दी, इलायची, काली मिर्च आदि जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतों ने ऊंची छलांग लगाई है। हालांकि इस बीच गेहूं, चावल के भाव उतरते-चढ़ते रहे हैं और विलासिता की वस्तुएं विशेषकर इलेक्ट्रानिक वस्तुओं की कीमतों में जीवनावश्यक वस्तुओं की तुलना में तेजी से गिरावट आई है।
महंगाई की मार से हर आम और खास व्यक्ति परेशान है। निर्धन वर्ग की तो जैसे कमर ही टूट गई है। दक्षिण अंबाझरी रोड पर चल रहे एक निर्माण कार्य के मजदूर सुलोचन ने बताया कि मजदूरी से हर माह ढाई से तीन हजार रुपये की कमाई होती है। तीन बच्चे हैं। इन्हें स्कूल भेजने की इच्छा है, लेकिन पैसे नहीं होने के कारण सरकारी स्कूल में जा रहे हैं। नये-नये ड्रेस खरीदने के लिए यह कमाई कम पड़ जाती है। घर की दूसरी चीजें खरीदने में भी ज्यादातर पैसा खर्च हो जाता है। खाना बनाने के लिए मिट्टी तेल ब्लैक में 20 से 25 रुपये लीटर खरीदना पड़ता है।
कपड़े की दुकान में सेल्समैन के रूप में कार्य करने वाली गीताा यादव ने बताया कि ढाई हजार में क्या होता है। पति की पगार चार हजार है, दोनों की आमदनी मिलाकर साढेड छह हजार होती है। करीब दो हजार रुपया मकान के किराये और बिजली बिल में चला जाता है। बाकी बच्चों की पढ़ाई और महीने का राशन में खर्च होता है. एक-एक रुपये बचाने के लिए खरीदारी में मोलभाव करनी पड़ती है।
ठेकेदारी के कार्य से जुड़े आर.सिंह ने बताया कि लाखों का काम चल रहा है। बिल आता है, बैंक में जमा हो जाता है। उसी से घर के खर्च के लिए पैसे निकाल लेते हैं। परिवार बड़ा होने से खर्च भी ज्यादा है। बच्चों की पढ़ाई का खर्च अलग। पहले थोक में भी एक बोरी चावल, गेंहू आदि खरीदते थे। अब तो हर बोरी की कीमत दो-से पांच सौ रुपये बढ़ी हुई है। छोटी-छोटी चीजों के दाम बढ़ गए हैं। हरी सब्जियों में तो जैसे महंगाई की आग लगी हुई है। इतनी कमाई होने के बाद हमारा यह हाल है, तो निधर्न लोगों का क्या हाल होगा, यह सोच कर मन में दु:ख होता है।
एक निजी कंपनी में बतौर सहायक प्रबंधक कार्य करने वाले संजय मिश्रा ने बताया कि महंगाई बढ़ती है, लेकिन उसकी तुलना में पगार नहीं बढ़ती है। लेकिन खाना खाना तो नहीं छोड़ सकते हैं। मजबूरी है। हर चीज खरीदनी पड़ती है। सबसे ज्यादा असर तो बचत पर पड़ी है। पहले 12 हजार महीने की कमाई में जहां चार से पांच हजार रुपये प्रतिमाह की बचत हो जाती थी, वहीं अब दो से तीन हजार तक बचत करना मुश्किल हो जाता है। स्थिति तो यह आ गई है कि अब कभी-कभी बचत के पैसे भी खर्च करने की नौबत आ जाती है। पहले महीने में दो दिन बार सपरिवार बाहर खाना खाने चले जाते थे। अब तो एक बार जाने के लिए भी सोचना पड़ता है।



एक साल के अंतराल पर वस्तुओं कें मूल्य आंकड़े
वस्तुएं 15 जुलाई 2009 15 जुलाई 10

पेट्रोल 45.00 57.00
डीजल 28.00 36.00
रसोई गैस 335.00 370.00
केरोसिन 9.50 12.50
गेहू २२.00 24.00
चावल 2६.00 30.00
चना 2६.00 32.00
तुअर ६०.00 65.00
चीनी २५.00 32.00
सरसों 2५.00 32.00
जीरा 10८.00 140.00
हल्दी ६८.00 190.00
सोफ मोटी 8९.00 105.00
कालीमिर्च 13९.00 165.00
हरी इलायची 5७0.00 1500.00
(सभी आंकड़े रुपए प्रति किलो में हैं। वस्तुओं के मूल्य स्थानीय दुकानदारों से बातचीत पर आधारित हैं)

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

डाक विभाग की सुस्ती से लाखों कमा रहे हैं कूरियर वाले

स्पीडपोस्ट का दावा खोखला
नागपुर।
भारतीय डाक विभाग की सुस्ती के कारण इन दिनों निजी कूरियर कंपनियां हर दिन लाखों रुपये कमा रही हैं। 24 घंटे में स्पीड पोस्ट पहुंचाने का दावा करने वाले डाक विभाग का दावा खोखला साबित हो रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि निजी कूरियर कंपनियों की अपेक्षा आज भी भारतीय डाक विभाग के देश के दूर-दराज तक मानव संसाधन और नेटवर्क मौजूद हैं, जहां- डाक पहुंच सकती है। वहीं डाक विभाग की तुलना में निजी कूरियर कंपनियां कम स्टॉफ और बेहतर डिलिवरी की रणनीति से बाजार में बाजी मार रही हैं। वहीं भारतीय डाक विभाग निजी कूरियर कंपनियों से कम चार्ज वसूलने के बाद गुणवत्तायुक्त सेवा उपलब्ध करता है, लेकिन ग्राहकों को भरोसा कूरियर कंपनियों के प्रति बढ़ता जा रहा है। आचश्र्य की बात है कि 100 ग्राम के वजन वाले पत्र को डाक विभाग 25 रुपये में देश के किसी भी कोने में पहुंचाने का दावा करता है। वहीं कूरियर कंपनियां उसी वजन के डाक के बदले 200 से 250 रुपये वसूलती हैं।
डाक विभाग की सूत्रों की मानें तो गत दिनों नागपुर डाक विभाग का हवाई सेवा ठप हो गई है। पायलट नहीं मिलने के कारण इस तकनीक को बंद कर दिया गया। जिस समय डाक विमान सेवा शुरू थी, तब डाकों की आवाजाही तेज थी। आज स्थिति यह है कि नागपुर से दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी में स्पीड पोस्ट सेवा तीन दिन में पहुंच रही है, जबकि नागपुर से दिल्ली तक स्पीडपोस्ट सेवा 24 घंटे में पहुंची है। वहीं दूसरी ओर निजी कूरियर कंपनियां लोगों से स्पीड पोस्ट सेवा की तुलना में बीस गुना ज्यादा शुल्क लेकर भी 24 घंटे के अंदर कूरियर पहुंचाने का दावा कर रही है। धंतोली स्थित एक प्रतिष्ठित कूरियर कंपनी के प्रबंधक ने बताया कि भले ही कूरियर शुल्क भारतीय डाक से ज्यादा हो, लेकिन इसकी डिलिवरी के प्रति हम प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि देश के प्रमुख शहरों में हम 24 घंटे के अंदर कूरियर पहुंचाते हैं। नहीं पहुंचने पर पैसे वापस करने की भी गारंटी देते हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय डाक विभाग की तरह हमारा लंबा-चौड़ा भले ही नेटवर्क न हो, लेकिन जितना नेटवर्क है, वह मजबूत है। स्टाफ समर्पित है। यहां से मेट्रो सिटी के लिए हमारी डाक प्लेस से जाती है। इसे हमारा आदमी लेकर जाता है। दूसरे यातायात के भरोसे कूरियर की बुकिंग नहीं की जाती है। इसलिए हमारी सेवा तेज है। इसलिए ग्राहकों का हमारी सेवा के प्रति विश्वास बढ़ रहा है। वहीं कई लोगोंं की शिकायत यह भी है कि कूरियर कंपनियां एक से दो दिन में कूरियर पहुंचाने का दावा कर पैसे तो ले लेती हैं लेकिन वह समय पर पहुंचता ही नहीं है। भले ही डाक विभाग की सेवा में देरी होती है, लेकिन कम पैसे में डाक पहुंच जाती है। डाक विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि डाक विभाग ग्राहकों को निर्धारित समय में डाक पहुंचाने की गारंटी नहीं देता है, लेकिन डाक पूर्व निर्धारित समय पर निकलते हैं और दूसरे शहर में पहुंचते हैं। वहां डिलिवरी में देरी होती है। इसके अलावा कूरियर कंपनियां दूर-दराज के क्षेत्रों में कूरियर पहुंचाने का दावा तो करती हैं, लेकिन कई बार देखा गया है कि उनकी सेवा शहरों तक ही सीमित है। देश के कोने-कोने में आज भी डाक विभाग की पहुंच कायम है।

हर दिन पंजीयन के लिए आ रहे हैं 400 वाहन

स्थायी नंबर मिलने में हो रही देरी
नागपुर।
अमरावती रोड स्थित क्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट कार्यालय (आरटीओ) में इन दिनों काम का बोझ इतना बढ़ गया है कि नगर में खरीदे जाने वाले वाहनों के स्थायी पंजीयन नंबर नहीं दिया जा रहा है। आरटीओ सूत्रों की मानें तो हर दिन संतरानगरी में दो पहिया और चार पहिये वाहन समेत करीब 400 वाहनों का पंजीयन हो रहा है। वाहन खरीदने वालों को तीन से चार सप्ताह तक स्थायी पंजीयन नंबर नहीं मिलने की शिकायत आ रही है। जबकि नियमानुसार नये वाहन का स्थायी पंजीयन नंबर एक से दो तीन के अंदर जारी होना चाहिए। जब तक स्थायी नंबर नहीं मिल जाता है, तब तक वाहन डीलर ग्राहकों को आरटीओ की ओर से सेट्रल मोटर वेहिकल एक्ट 1981 के नियम 41 के तहत ट्रेड सर्टिफिकेट का अस्थायी नंबर उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन नियमानुसार इस नंबर के बाद भी वाहन तब तक सार्वजनिक स्थानों पर नहीं चलाए जा सकते है, जब तक कि स्थायी नंबर नहीं मिल जाए। मोटर वेहिकल एक्ट 1988 के तहत बिना स्थायी नंबर के वाहन चलाने पर 1000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। लेकिन वाहन डीलर वाहन खरीदने के एक दो ही घंटे में टे्रड सर्टिफिकेट (टीसी) नंबर उपलब्ध करा देते हैं। जानकारों की मानें तो वाहन डालर ऐसा इसलिए करते हैं, जिससे कि ग्राहक किसी दूसरे डीलर के पास से वाहन न खरीद ले। नगर के अनेक लोगों का यह अनुभव है कि उन्हें वाहन खरीदने के कुछ ही घंटे बाद टी.सी. नंबर तो मिल गया, लेकिन स्थायी नंबर के लिए एक माह तक का समय लग गया। हालांकि आरटीओ इस नंबर को देने के लिए सेवा शुल्क भी वसूल रहा है, इसके बाद भी नंबर मिलने में देरी हो रही है। वहीं आरटीओ नागपुर के अधिकारी वी.वी. लांडे का कहना है कि स्थायी पंजीयन नंबर जारी होने में केवल उन वाहनों को देरी हो रही है, जिनके कागजात दुरुस्त नहीं हैं। जिनके कागज पूरे हैं और उन्होंने पंजीयन शुल्क भर दिया है, उन्हें तुरंत स्थायी पंजीयन नंबर उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि संयोगवश दो-चार वाहनों के स्थायी नंबर मिलने में देरी हुई होगी। इससे पूरे कार्यप्रणाली पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
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टिंबर खरीदी पर स्टैंप ड्यूटी के सरकारी आदेश पर रोक

नागपुर। मुंबई उच्च न्यायाल की नागपुर खंडपीठ ने टिंबर खरीदी पर स्टैंप ड्यूटी लगाने के राज्य सरकार के जारी किए गए आदेश को चुनौती वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार के आदेश पर रोक लगाया है। याचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता आनंद परचुरे ने बताया कि राज्य सरकार के वन विभाग की ओर से नीलामी या टेंडर के माध्यम से टिंबर एवं जलाऊ लकडिय़ां बेची जाती हैं। याचिकाकर्ता एसोसिएशन के सदस्य वर्षों से इसे खरीद रहे हैं। जिसके लिए तय नियमों के अनुसार भुगतान किया जाते हैं।
अचानक राज्य सरकार की ओर से 27 अगस्त 09 को अधिसूचना जारी कर खरीदे गए माल पर अतिरिक्त स्टैंप ड्यूटी वसूलने के आदेश अधिकारियों को जारी किए गए। आदेश के अनुसार नीलामी करने वाले अधिकारियों ने नीलामी के 7 दिनों के भीतर स्टैंप ड्यूटी भरने और ऐसा नहीं करने पर 18 प्रतिशत ब्याज की दर से राशि की अदायगी के लिए 22 नवंबर 09 और 3 दिसंबर 09 को पत्र जारी किए गए। यचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार का उक्त निर्णय भले ही गैरकानूनी न हो, लेकिन तर्कसंगत नहीं है।
याचिका में राज्य सरकार के 27 अगस्त 09 के आदेश को निरस्त करने एवं अंडर प्रोटेस्ट भरी गई राशि वापस देने तथा 27 अगस्त की अधिसूचना के साथ 22 नवंबर और 3 दिसंबर के पत्र पर भी रोक लगाने का अनुरोध किया गया। सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किया।

पोषण आहार का ठेका पाने धरने पर बैठीं महिलाएं

आईएसओ प्रमाणपत्र नहीं होने की शर्त पर बचत गटों को नहीं मिला ठेका
नागपुर।

मंगलवार को दोपहर बचत गट महिला महासंघ की सदस्यों ने रिजर्व बैंक चौक स्थित डा. बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा के समीप धरना दिया। उनकी मांग है कि राज्य सरकार की महिला व बाल कल्याण विभाग के अंतर्गत स्कूल में वितरण होने वाले पोषण आहार को आंगनवाडी कार्यकताओं व महिला बचट गटों को कार्य दिया जाए। यह कार्य वे पहले से ही करती आ रही हैं। महासंघ की अध्यक्ष करुणा चिमणकर ने बताया कि राज्य सरकार ने वर्ष 2004 से नियमित रूप से राज्य के महिला बचत गटों को स्कूली पोषण आहार वितरण का कार्य दिया था। करीब चार वर्षों तक महिला बचट गटों ने इस कार्य को ईमानदारी व सफलता से किया। इससे प्रभावित होकर राज्य सरकार ने इन्हें न केवल प्रशिक्षण दिया, बल्कि पुरस्कृत भी किया। इस कार्य को पाकर महिला बचट गट से जुड़ी सैकड़ों महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई।
उन्होंने कहा कि महिला बचट गटों के माध्यम से स्कूलों में पोषण आहार उपलब्ध कराने का आदेश नंबर 191/2001 पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को दिया था। तभी से बचट गटों के माध्यम से स्कूलों में पोषण आहार का ठेका दिया गया। महाराष्ट्र में इस प्रयोग की सफलता के बाद वर्ष 2004 से इसे पूरे देशभर में चलाया गया। फिलहाल यह योजना एक अगस्त 2010 तक शुरू रहेगी। आगे के ठेका के लिए सरकार ने निविदा निकाला था। इस निविदा को महिला बचट गटों ने भी भरा था। लेकिन बचट गटों की निविदा यह कह कर रद्द कर दी गई कि उनके आईएसओ -9001 का प्रमाणपत्र नहीं है। इस तरह अगस्त के बाद का ठेका दूसरे किसी को दे दिया गया। महासंघ का कहना है कि जब पहली बार यह ठेका मिला था, तब इस तरह की शर्त नहीं रखी गई। लेकिन इस बार 1500 करोड़ रुपये का ठेका दूसरे को दिया गया है। इसमें भ्रष्टाचार भी हुआ है। इस ठेका को पाने के लिए राज्य भर के 350 महिला बचट गटों ने निविदा भरा था। लेकिन उद्योगपतियों को दिया गया।
महासंघ की मांग है कि 1500 करोड़ रुपये का यह ठेका सरकार को तत्काल रद्द कर स्थानीय स्तर पर इसकी निविदा निकालनी चाहिए। धरना प्रदर्शन में कविता खैरकर, इंदिरा चौधरी, नालंदा गणवीर, संगीता ठाकरे, तोशीबाई खासरकर, सुशीला तिरपुडे, हेमा धुवे, सुजाता वासनिक, वंदना गोडबोले, रंजना गणवीर, उषा उपरे, मनीषा हाडके, प्रतिभा मेश्राम, संगीता ढोक, मीना मेश्राम, सुनीता मेश्राम, सरोज, वंदना गवई, वैशाली, कमल बांते, नमिता सोमकुंवर, सुमन हाडके, माया शेंडे, वर्षा हाडके, पुष्पा टेभरे, गीता सहारे, कोमेश्वरी गणवीर, रत्नमाला मेश्राम, वंदना निकोसे, कांचन जनबंधु, शिला कोचे, कविता पाटिल, माधुरी सोनटक्के, सुनीता सहारे, मीना दिवेकर, नलिनी भगत, सरिता पराते समेत अनेक महिलाएं उपस्थित थीं।
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सबसे ज्यादा जंगल विदर्भ में, शोध संस्थान बनेगा पुणे में

फिर विदर्भ की उपेक्षा
नागपुर।
वैसे तो विदर्भवादी नेता वर्षों से राज्य सरकार पर विकास को लेकर विदर्भ की अपेक्षा करने का अरोप लगाते रहे हैं। लेकिन हाल ही में में इसका एक ताजा उदाहरण सामने आया है। राज्य के जंगलों के लिए शोध संस्थान बनाने का प्रस्ताव था। राज्य के सबसे ज्यादा जंगल विदर्भ के जिलों में हैं। फिर भी वन शोध संस्थान पुणे में बनाने का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है जबकि राज्य के वन विभाग का मुख्यालय नागपुर में है। ज्ञात हो कि शोध संस्थान बनाने का प्रस्ताव संबंधी घोषणा वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश ने जनवरी माह में पत्रकारों से बातचीत में की थी। उस समय पत्रकारों से बातचीत में आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र का 57 प्रतिशत वन क्षेत्र विदर्भ में ही है।
राज्य के इस निर्णय से विदर्भ के वन प्रेमियों में नराजगी है। सतपुड़ा फाउंडेशन और नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी, अमरावती (एनसीएसए) ने सरकार के इस निणर्य का कड़ा विरोध किया है। फाउंडेशन के प्रमुख किशोर रिठे ने कहा है कि सरकार का यह निर्णय वस्तुस्थिति की हकीकत देखते हुए करनी चाहिए। जब सबसे ज्यादा वन क्षेत्र विदर्भ के जिलों में हैं तो फिर संस्थान पुणे में क्यों बनाया जा रहा है? सरकार के इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि विदर्भ के साथ किस तरह से भेदभाव किया जा रहा है। रिठे का कहना है कि शोध संस्थान एक तरह से वन विश्वविद्यालय की तरह से होगा। लेकिन इसके लिए सबसे अनुकूल जगह विदर्भ ही हो सकता है, पर सरकार इसे जंगल से दूर बनाने जा रही है। यह निर्णय एक तरह से विदर्भ के साथ-साथ प्रकृति की उपेक्षा है।
वहीं इस संबंध में वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पुणे एक अच्छा शहर है। वहां पहले से ही कई महत्वपूर्ण संस्थान हैं। शोध कार्य के लिए वहां अच्छा महौल है।
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खली प्लाट से नागरिक परेशान

नागपुर। शहर के सौंदर्यीकरण के लिए नागपुर सुधार प्रन्यास (एनआईटी)ने कई नियम बना रखा रखे हैं। आवासीय व औद्योगिक क्षेत्रों को साफ-सुथरा रखने के निर्देश समय-समय पर दिए जाते हैं। लेकिन उन मैदानों व खाली प्लाटों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जो एनआईटी के ही हैं। इन दिनों बारिश के कारण एनआईटी के इन प्लॉटों में गंदगी और कीचड़ का सम्राज्य दिखाई पड़ता है, इससे स्थानीय नागरिक त्रस्त हैं।प्रशासन नींद से कब जागेगा ऐसा लोग सवाल कर रहे हैं.
वर्धा रोड पर डॅाक्टर कॉलोनी में एनआईटी के प्लॉट लोगों के लिए भारी परेशानी का कारण बने हए हैं। इस संबंध में मनपा से शिकायत भी की गई है लेकिन उस पर कोई अमल नहीं हुआ है। यही हाल साईं मंदिर के पास गजानन नगर का है। यहां खाली प्लाट पर कचरे का ढेर लगा हुआ है। आसपास के लोग इसकी बदबू से परेशान हैं। शीघ्र की गंदगी नहीं हटाई गई तो बीमारी फैल सकती है। एनआईटी की बसाई गई नगर की अनेक बस्तियों में खाली रखे गए प्लॉटों की भी यही स्थिति है। समाज भवन, खेल मैदान के लिए एनआईटी ने जो स्थान छोड़े थे, वहां बारिश के कारण कीचड़ और गंदगी की भरमार हो गई है।
उत्तर नागपुर स्थित महेंद्र नगर के पास एक बस्ती का नजारा तो और भी त्रासदीपूर्ण है। एनआईटी के बड़े मैदान में बनाया गया कुआं कचरे से भरा है। कलमना मार्ग पर एनआईटी की जमीन पर अतिक्रमण किया गया है। दक्षिण में रामेश्वरी व हुड़केश्वर मार्ग के खाली प्लाट पर लोग कचरा फेंक रहे हैं।
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पुलिस को चकमा दे फूंका जेम्सलेन का पुतला

नागपुर पहुंची शिवाजी पर विवादित पुस्तक की आग
रिजर्व बैंक चौक पर शिवसैनिकों ने किया प्रदर्शन
नागपुर। जेम्सलेन की विवादास्पद पुस्तक शिवाजी 'द हिंदू किंग इन इस्लामिक इंडियाÓ के खिलाफ विरोध की आग संतरानगरी में भी पहुंच गई है। पुस्तक में लेखक द्वारा शिवाजी पर लिखी अभद्र बातों के खिलाफ नागपुर की शिवसेना इकाई के कार्यकर्ताओं ने रिजर्व बैंक चौक पर शिवसेना के जिला उपप्रमुख राधेश्याम हटवाल, करण सिंह तुली और सूरज गोजे के नेतृत्व में जमकर नारेबाजी की। पुलिस के तगड़े बंदोबस्त के बाद भी शिवसैनिकों ने उन्हें चकमा देकर विवादित पुस्तक के लेखक जेम्सलेन का पुतला जलाया। शाम 4 बजे के करीब रिजर्ब बैंक के समीप स्थित बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर के पुतले के समीप शिवसैनिक इकट्ठा होना शुरू हए। पुलिस बल भी किसी प्रकार की अनहोनी को रोकने के लिए मुस्तैद था। करीब 4:30 बजे शिवसैनिकों ने पुस्तक के लेखक के खिलाफ नारेबाजी शुरू की। पुलिस का पूरा ध्यान यहां उपस्थित कार्यकर्ताओं की नारेबाजी पर था। तभी अचानक पास ही रिजर्ब बैंक चौक पर एक शिवसैनिक ने सुनियोजित तरीके से जेम्सलेन का पुतला जला दिया। आग की ऊंचीं लपटें देखकर सबका ध्यान उस ओर गया। पुलिस के जवान भी उस ओर दौड़े और पास पहुंच कर पुतले की आग को बुझाया। तभी एक अन्य शिवसैनिक ने छिपते हुए जेम्सलेन का दूसरा पुतला लाया। पुलिस उसे जलाने से रोकने की पूरी कोशिश की। लेकिन शिवसैनिक दूसरे पुतले को भी जलाने में सफल रहे। प्रदर्शन के बाद पुलिस ने करीब दर्जन भर शिवसैनिकों को गिरफ्तार किया। उन्हें सीताबर्डी थाने ले गई और वहां औपचारिक कार्रवाई के बाद उन्हें रिहा कर दिया।
प्रदर्शन में नगरसेवक प्रवीण सांदेकर, नगर सेविका जयश्री जांभुले, निशांत चांदेकर, नंदू धोटे, उप विभाग प्रमुख टिंकू दिगवा, बाबू हरियानी, मनोज शाहू, सुरेंद्र सिंह, अजय पांडे, देशकर, किसान प्रजापति, राकेश बोरीकर, यशवंत जौंजाल, रजत चंदेल, राजू कनौजिया, केशन कुंभारे, पुरुषोत्तम कांद्रीकर, चिंटू महाराज समेत अनेक कार्यकर्ता उपस्थित थे।
ज्ञात हो कि जेम्सलेन की लिखित पुस्तक में शिवाजी महाराज की विवादित बातों के कारण इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने इस पुस्तक से प्रतिबंध हटाने निर्देश दिया है। इसको लेकर शिवसैनिकों में रोष है। राज्य भर में शिवसैनिक समेत कई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं।

बदहाली में है गणेशपेठ का एसटी स्टैंड

नागपुर। गणेशपेठ स्थित एस.टी. बस स्टैंड में अव्यवस्था का नजारा आम है। बारिश में यात्रियों की सुविधा और सुखद यात्रा के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं की गई है। स्टैंड के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते ही हल्के से नीचे फर्श पर पानी जमा हुआ है। पानी में पांव या जूते-चप्पल नहीं भीगें, इसके लिए किसी यात्री ने दो-तीन ईंटें रख दी हैं। ईंट के सहारे लोग पांव को भींगने से बचाते हुए जैसे-तैसे अंदर पहुंच रहे हैं। परिसर में गंदगी का नजरा देख कर लगता है जैसे कई दिनों से यहां किसी ने झाडू ही नहीं लगाया हो। चारों ओर की दीवालों पर पान और खर्रे की पीक की गंदगी है। यहां यात्रियों की सुविधा के लिये बने शौचालय का बुरा हाल है। परिसर की दीवालों के किनारे-किनारे गंदगी देखकर घिन आती है। बस में चढऩे के लिए जैसे ही यात्री प्लेटफार्म से निकलते हैं, बदबू के कारण दो मिनट खड़ा होना मुश्किल हो जाता है।
प्रतीक्षालय और टिकट घर में लगे पंखे हमेशा बंद नजर आते हैं। जबकि यहां कर्मचारियों के कमरे के पंखे चलते हुए दिखते हैं। यात्रियों की सहायता के लिए बना बूथ खाली है। वहां कोई नजर नहीं आया।
नागपुर से वर्धा जा रहे एक यात्री डा. सुरजीत कुमार सिंह ने बताया कि यहां की गंदगी का अलाम देखकर लगता है कि बस स्टैंड का कोई माई-बाप नहीं है। पहली बार इस बस स्टैंड पर आया हूं। यदि पहले मालूम होता कि यहां इस तरह इतनी गंदगी होती तो निजी बस से सफर करता। डा.सिंह ने बताया कि यहां के कर्मचारी सीधे मुंह बात तक नहीं करते हैं। यदि इसकी शिकायत भी की जाए तो कहां की जाए, इसकी यहां कोई व्यवस्था नहीं दिख रही है और न ही किसी प्रकार का निर्देश बोर्ड लगाया गया है कि कहां यात्री अपनी शिकायत दर्ज करायें।
बस स्टैंड से बाहर भी दुर्दशा है। मुख्य द्वार पर ऑटोरिक्शा और हाथ रिक्शा वालों ने कब्जा किया है। जहां से बस निकलती और प्रवेश करती है, वहां ऑटो और रिक्शा वाले के जमावड़े के कारण हमेशा ही दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है। आश्चर्य की बात है कि बस के प्रवेश और निकास द्वार पर मनपा के चुंगी नाके का एक छोटा-सा दफ्तर दिखता है, लेकिन यह रविवार को बंद नजर आया। बस से किसी तरह की व्यावसायिक उपयोग के लिए वस्तुएं आ जा रही हैं, इसकी पूछ परख करने वाले भी नजर नहीं आते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से भी पूरे परिसर में लापरवाही दिखी। हर दिन हजारों लोगों की आवाजाही वाले इस स्टैंड परिसर में रविवार को एक पुलिसकर्मी तक भी नहीं दिखा।

बदहाली में है गणेशपेठ का एसटी स्टैंड

नागपुर। गणेशपेठ स्थित एस.टी. बस स्टैंड में अव्यवस्था का नजारा आम है। बारिश में यात्रियों की सुविधा और सुखद यात्रा के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं की गई है। स्टैंड के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते ही हल्के से नीचे फर्श पर पानी जमा हुआ है। पानी में पांव या जूते-चप्पल नहीं भीगें, इसके लिए किसी यात्री ने दो-तीन ईंटें रख दी हैं। ईंट के सहारे लोग पांव को भींगने से बचाते हुए जैसे-तैसे अंदर पहुंच रहे हैं। परिसर में गंदगी का नजरा देख कर लगता है जैसे कई दिनों से यहां किसी ने झाडू ही नहीं लगाया हो। चारों ओर की दीवालों पर पान और खर्रे की पीक की गंदगी है। यहां यात्रियों की सुविधा के लिये बने शौचालय का बुरा हाल है। परिसर की दीवालों के किनारे-किनारे गंदगी देखकर घिन आती है। बस में चढऩे के लिए जैसे ही यात्री प्लेटफार्म से निकलते हैं, बदबू के कारण दो मिनट खड़ा होना मुश्किल हो जाता है।
प्रतीक्षालय और टिकट घर में लगे पंखे हमेशा बंद नजर आते हैं। जबकि यहां कर्मचारियों के कमरे के पंखे चलते हुए दिखते हैं। यात्रियों की सहायता के लिए बना बूथ खाली है। वहां कोई नजर नहीं आया।
नागपुर से वर्धा जा रहे एक यात्री डा. सुरजीत कुमार सिंह ने बताया कि यहां की गंदगी का अलाम देखकर लगता है कि बस स्टैंड का कोई माई-बाप नहीं है। पहली बार इस बस स्टैंड पर आया हूं। यदि पहले मालूम होता कि यहां इस तरह इतनी गंदगी होती तो निजी बस से सफर करता। डा.सिंह ने बताया कि यहां के कर्मचारी सीधे मुंह बात तक नहीं करते हैं। यदि इसकी शिकायत भी की जाए तो कहां की जाए, इसकी यहां कोई व्यवस्था नहीं दिख रही है और न ही किसी प्रकार का निर्देश बोर्ड लगाया गया है कि कहां यात्री अपनी शिकायत दर्ज करायें।
बस स्टैंड से बाहर भी दुर्दशा है। मुख्य द्वार पर ऑटोरिक्शा और हाथ रिक्शा वालों ने कब्जा किया है। जहां से बस निकलती और प्रवेश करती है, वहां ऑटो और रिक्शा वाले के जमावड़े के कारण हमेशा ही दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है। आश्चर्य की बात है कि बस के प्रवेश और निकास द्वार पर मनपा के चुंगी नाके का एक छोटा-सा दफ्तर दिखता है, लेकिन यह रविवार को बंद नजर आया। बस से किसी तरह की व्यावसायिक उपयोग के लिए वस्तुएं आ जा रही हैं, इसकी पूछ परख करने वाले भी नजर नहीं आते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से भी पूरे परिसर में लापरवाही दिखी। हर दिन हजारों लोगों की आवाजाही वाले इस स्टैंड परिसर में रविवार को एक पुलिसकर्मी तक भी नहीं दिखा।

तबेले की आड़ में फल-फूल रहा नकली दूध का धंधा

नागपुर। एक ओर नगर के तबेले के से चंडीपुरा (मस्तिष्क ज्वर) फैलने का खतरा बना हुआ है, वहीं कुछ तबेले की आड़ में नगर में नकली दूध का धंधा फल फूल रहा है। जानकारों का कहना है कि नकली दूध व्यवसाय से जुड़े लोग भी शहर में मवेशी बंधवाने का काम सुनियोजित तरीके से कर रहे हैं। देखा जाए तो नगर में ऐसी अनेक कालोनियां हैं, जहां दो-चार मवेशी बांध कर तबेला चलाया जा रहा है। लेकिन इन दो-चार मवेशियों वाले तबेले से ही प्रतिदिन 200-300 लीटर दूध बेचने का धंधा चल रहा है। जब कि दो-चार मवेशियों से दूध के धंधे में मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है। क्योंकि इतने मवेशियों के चारे का खर्च इतना होता है कि उनके दूध से पूरा पैसे और लागत नहीं वसूल हो सकती है। अनुमान है कि नगर में छोटे-बड़े करीब 350 तबेले हैं। सूत्रों की मानें तो दो-चार मवेशी वाले अनेक तबेला संचालक नकली दूध के एजेंटों के संपर्क में हैं। वे अपने यहां कृत्रिम दूध तैयार करते हैं। उनके यहां मवेशी होने से किसी को इस बात का शक भी नहीं होता है कि वहां नकली दूध का कारोबार होता होगा। ग्राहक तबेला वाले से सीधे दूध लेकर उन्हें असली दूध की कीमत दे रहे हैं, पर बदले में नकली दूध प्राप्त कर रहे हैं।
नगर के प्रभावशाली तबेला संचालक न केवल स्थानीय लोगों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं, बल्कि सरकारी जमीन पर भी अतिक्रमण किये हुए हैं। छोटी-मोटी बस्ती के कई लोग तबेले वालों के कारण कहीं और रहने चले गए।
ज्ञात हो कि तबेलों से स्वास्थ्य पर प्रभाव की शिकायतों को देखते हुए मुंबई, भोपाल, जबलपुर जैसे शहरों में तबेलों को शहर से पहले ही बाहर किया जा चुका है। मुंबई में गोरेगांव, दहीसर, जबलपुर में पनागर मार्ग व भोपाल में रिंग रोड के बाहर तबेले बनाए गए हैं। नागपुर में भी 4 वर्ष पूर्व ऐसा प्रयास किया गया था। पूर्व नागपुर में भांडेवाड़ी, पश्चिम में गोरेवाड़ा व दक्षिण में शिवणगांव में इसके लिए कुछ भूमि तय की गई थी। गोरेवाड़ा में तो तबेले का प्रस्ताव लगभग स्वीकृत हो चुका था। लेकिन इसकी फाइल अधिकारियों के टेबल पर कहां दबी हुई है, कोई बताने को तैयार नहीं।
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खैरलांजी मामले में फांसी की सजा बदली उम्रकैद में

अब सभी 8 आरोपियों को 25 वर्ष की उम्रकैद
(0) वीडियो कांफ्रेंस के जरिये सुनाया गया फैसला
(0) सुप्रीम कोर्ट में दी जाएगी फैसले को चुनौती
नागपुर।
मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने बुधवार को खैरलांजी हत्याकांड मामले के 6 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद की सजा में तब्दील कर दिया है जो 25 साल की होगी।
मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे दो अन्य दोषियों की सजा भी 25 साल कर दी गई है। मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति ए.पी. लवांदे ने कहा कि सभी आठों दोषियों को 25 साल की सजा काटनी होगी। इस सजा में वह अवधि भी शामिल होगी जो ये दोषी जेल में बिता चुके हैं। न्यायालय का फैसला आने के बाद नागपुर में कुछ स्थानों पर टायर जलाकर तथा दुकानें बंद कर विरोध किया गया।
उल्लेखनीय है कि भंडारा जिले के खैरलांजी गांव में 29 सितंबर 2006 को उत्तेजित भीड़ ने एक दलित परिवार के 4 सदस्यों की नृशंस हत्या कर दी थी। मृतकों के नाम सुरेखा भैयालाल भातमांगे, उसकी बेटी प्रियंका, दो पुत्र सुधीर और रोशन थे।
यह फैसला न्यायमूर्ति लवांदे ने सुनाया और न्यायमूर्ति आर.सी. चव्हाण वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से उनके साथ थे। वे किसी काम के सिलसिले में मुंबई हाईकोर्ट गए थे। यह पहला अवसर है जब किसी खंडपीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति ने बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की अपीलें खारिज कर दीं।
भंडारा जिला सत्र न्यायालय ने 24 सितंबर 2008 को सकरू बिंजेवार, रामू धांडे, शत्रुघ्न धांडे, विश्वनाथ धांडे, जगदीश मांडलेकर और प्रभाकर मांडलेकर को फांसी की सजा सुनाई थी। जबकि गोपाल बिंजेवार और शिशुपाल धांडे को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। राज्य सरकार ने फांसी की सजा पर मुहर लगाने तथा सीबीआई ने उम्र कैदियों की सजा फांसी में बदलने एवं एट्रासिटी एक्ट के तहत सभी दोषियों पर सजा बरकरार करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जबकि बचाव पक्ष की ओर से निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने के बाद अदालत ने 131 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि भोतमांगे परिवार के सदस्य सुरेखा और प्रियंका ने सिद्धार्थ गजभिए के साथ आरोपियों की हुई मारपीट के संदर्भ में गांववालों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। उसी का बदला लेने के उद्देश्य से यह हत्या की गई। हत्या का कारण देखते हुए इसे 'रेअरेस्ट ऑफ रेअरÓ नहीं माना जा सकता है। संपूर्ण मामले के पीछे बदले की भावना दिखाई दे रही है। जिसे देखते हुए फांसी की सजा नहीं दी जा सकती है। केवल अनुसूचित जाति के होने के कारण यह हत्या होने का कोई सबूत या कारण दिखाई नहीं दे रहा है जिससे एट्रासिटी एक्ट की धारा भी लागू नहीं हो सकती है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई की ओर से धारा 354 के तहत अपील ही नहीं की गई थी। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष को एफआईआर दर्ज करने में देरी क्यों हुई, इसकी खुलासा भी नहीं किया गया है। उक्त सभी कारणों को देखते हुए फांसी की सजा को 25 वर्ष की उम्र कैद में बदलने का आदेश दिया। 5-5 हजार का जुर्माना भी ठोंका। जुर्माना नहीं भरने पर 1 वर्ष का अतिरिक्त सजा के आदेश भी दिए। फैसले के बाद बचाव पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे एड. सुदीप जायसवाल एवं एड. नीरज खांदेवाले ने बताया कि हाईकोर्ट के इस फैसले को भी सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।

भैयालाल ने जताई नाराजी
खैरलांजी हत्याकांड से बचे भोतमांगे परिवार के एकमात्र सदस्य भैयालाल भोतमांगे हाईकोर्ट के फैसले से नाराज हैं। उन्होंने कहा कि न्यायालय का नतीजा अनपेक्षित है। मुझे न्याय दिलाना हो तो सुप्रीम कोर्ट में अपील की जानी चाहिए। उन्होंने इस बात को लेकर नाराजी जताई कि किसी भी आरोपी को फांसी की सजा नहीं सुनाई गई।

बचाव पक्ष खुश
दूसरी ओर बचाव पक्ष ने इस फैसले पर खुशी जाहिर की। एडवोकेट सुदीप जायसवाल और नीरज खांदेवाले ने बताया कि हमारी भूमिका पहले भंडारा न्यायालय ने मंजूर की और अब हाईकोर्ट ने। सीबीआई के वकील एजाज खान ने बताया कि आरोपियों का अपराध न्यायालय ने मंजूर किया और उन्हें कौन सी सजा दी जानी चाहिए यह न्यायालय का अधिकार है। हम कोर्ट के निर्णय से खुश हैं।
सुप्रीम कोर्ट में अपील करें : आंबेडकर
भारिप-बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि भोतमांगे परिवार को जिस निर्ममता से खत्म किया गया, उसका विचार न्यायालय ने नहीं किया है। राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र अपील करनी चाहिए। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को दुर्भाग्यजनक करार दिया। उन्होंने सवाल दागा कि क्या जाति आधारित राजनीति का झटका हमारे कानून को लगना शुरू हो चुका है?
मुख्यमंत्री से मिलेंगे कवाड़ेपीपल्स रिपा के नेता जोगेंद्र कवाड़े ने बताया कि इस मामले में अनुसूचित जाति-जमाती अत्याचार प्रतिबंधक कानून के तहत आरोप को क्यों हटाया गया यह समझ से बाहर की बात है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे।
... तो आंदोलन करेंगे : सुलेखा
रिपा नेता व पूर्व राज्यमंत्री सुलेखा कुंभारे ने इस निर्णय को दुर्भाग्यजनक करार दिया। उन्होंने कहा कि न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का पुनर्विचार नहीं किया गया तो आंदोलन करना पड़ेगा।
वर्धा में रोकी गीतांजलि
इस फैसले के विरोध में वर्धा में कुछ संगठनों ने गीतांजलि एक्सप्रेस को रोक दिया। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद ट्रेन आगे बढ़ पाई। समूचे भंडारा जिले में कड़ा पुलिस बंदोबस्त लगाया गया है। वर्धा, गोंदिया, अकोला में भी तगड़ा पुलिस बंदोबस्त लगाया गया है।
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फैसले के विरोध में प्रदर्शन

खैरलांजी प्रकरण के आरोपियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदले जाने का शहर में विरोध किया गया। टायर जलाकर विरोध करने वाले दो युवकों को सक्करदरा पुलिस ने हिरासत में लिया है। कोराडी, रिजर्व बैंक, चौक और कमाल चौक में भी विरोध जताया गया।
भंडारा जिले के खैरलांजी गांव में सितम्बर 2006 में भैयालाल भोतमांगे की पत्नी सुरेख, बेटी प्रियंका और दो बेटों सुधीर तथा रोशन की हत्या कर दी गई थी। हत्या को मामले में बुधवार को मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सभी आठों आरोपियों को फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इस फैसले (निर्णय) के विरोध में शहर के कोराडी, रिजर्व बैंक चौक, सक्करदरा और कमाल चौक में विरोध जताया गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार कोराडी इलाके में खैरलांजी प्रकरण के फैसले के विरोध में कुछ लोगों ने विरोध जताया। पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त होने के कारण विरोध शांतिपूर्ण ढंग से किया गया। रिजर्व बैंक चौक मेें भी उक्त फैसले का विरोध प्रदर्शन किया गया। सक्करदरा इलाके के सुबेदार ले-आऊट ठवरे कालोनी में नितिन मानवटकर (28) और सत्यम पाटिल ने टायर जलाकर क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उक्त दोनों को हिरासत में ले लिया। कमाल चौक में भी कुछ समय के लिए दुकानें बंद कराई गईं। इन क्षेत्र में विरोध शांतिपूर्ण ढंग से किया गया। इस मामले का बुधवार को फैसला आने के मद्देनजर शहर पुलिस आयुक्त प्रवीण दीक्षित ने अदालत परिसर में पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त लगा दिया था। बुधवार को सुबह से ही शहर के सभी चौराहों, संवेदनशील इलाकों में पुलिस दल को पेट्रोलिंग पर लगा दिया गया था। पुलिस गश्तीदल, कमांडो सभी स्थानों पर पूरी मुस्तैदी से नजर रखे हुए थे।
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10 बेटियों के पिता ने की आत्महत्या

बेटियों के ब्याह की चिंता खाए जा रही थी उसे
वह कैसी पत्नी जो मरने के बाद भी उसे कोसती रही
नागपुर।
10 बेटियों के पिता ने अपनी लाड़ली के ब्याह की चिंता से परेशान होकर मौत को गले लगा लिया। मरने के बाद गम में आंसू बहाने को कौन कहे वह अपने पति को ही कोसती रही. आधुनिकता के इस युग में अभी भी समाज के लोग दकियानूसी परंपरा से दूर नहीं हो पाए हैं। एक ऐसे ही मजदूर ने पत्नी के विरोध के बाद भी बेटे की चाह में 11 बेटियों का पिता बन गया । बेटा तो उसके घर में पैदा जरूर हुआ लेकिन तब तक परिवार का दायरा और जिम्मेदारी काफी ज्यादा बढ़ गई थी। बेटे की चाहत में एक के बाद एक 11 बेटियों का पिता बनना उसके लिए उस समय महंगा पड़ा, जब बेटियों की शादी की चिंता ने उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया। यह घटना बुधवार की सुबह जरीपटका थानांतर्गत मानकापुर रेलवे उड़ानपुल के पास हुई। मजदूर का नाम राधेलाल राणा (45) बताया गया है। राधेलाल राणा की शिनाख्त घटनास्थल पर मौजूद जरीपटका थाने के पीएसआई मुद्गल ने उसकी जेब से मिले पैन कार्ड के आधार पर की। बताया जाता है कि राधेलाल को बेटे की चाहत में 11 बेटियों का पिता बनने के बाद उसे एक बेटा हुआ। यह बेटा 11 वीं बेटी की मौत की बाद हुआ। बेटियों की शादी की चिंता उसे सताने लगी थी। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण घर में कलह का वातावरण था, जिसके चलते बुधवार की सुबह करीब 9 बजे राधेलाल ने मानकापुर रेलवे उड़ानपुल से करीब 50 गज की दूरी पर ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी। सुबह करीब 9 बजे जरीपटका थाने को इस घटना की सूचना मिली। उसके बाद जरीपटका थाने के पीएसआई मुदगल अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। टे्रन से कटने के कारण राधेलाल के परखच्चे उड़ गए थे। पुलिस कर्मियों ने बड़ी मुश्किल से उसके कटे हुए अंगों को एकत्रित किया। बताया जाता है कि राधेलाल की 11 वीं पुत्री की मौत के बाद उसके घर बेटे ने जन्म लिया। राधेलाल को अपनी बेटियों की शादी की चिंता दिन-रात खाए जा रही थी। राधेलाल की जेब से पुलिस को मोबाइल भी मिला। बताया जाता है कि पिछले एक माह पूर्व राधेलाल अपने परिवार के साथ नारा गांव में रहने गया था। इस मामले की जांच जरीपटका पुलिस कर रही है।

कैसी है यह पत्नी जिसे पति की मौत का गम नहीं
राधेलाल की पत्नी दो बेटियों की पैदाइश के बाद यह नहीं चाहती थी कि उसका परिवार और आगे बढ़े। लेकिन पति की जिद के आगे वह मजबूर हो गई। पति की इच्छा थी कि वंश चलाने वाला एक कुल का दीपक हो इसलिए न चाहते हुए भी वह पति का कहना टाल न सकी। राधेलाल की पत्नी राधा उर्फ राधन राधेलाल राणा उसकी मौत के बाद भी उसे कोसती रही।
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दैनिक १८५७ में १४ मे को प्रकाशित /...और 'फलां बो विकास की पहरुआ बन गईं

शनिवार, जुलाई 10, 2010

असंयमित भाषा के बहाने असली मुद्दे टालने की राजनीति

असंयमित भाषा के बहाने असली मुद्दे टालने की राजनीति
संजय स्वदेश
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के बयान पर राष्ट्रीय राजनीति में संयत भाषा को लेकर बवाल मचा हुआ है। आम आदमी का लहू बहाने वाले आतंकियों को फांसी की सर्जा मुकरर्र होने के बाद आखिर सरकार उन्हें क्यों पाल रही है। गड़करी ने जो सवाल उठाया, वह उनका निजी सवाल नहीं, देश की जनता का है। बयान की बहसबाजी में असंयमित भाषा का नाम लेकर असली मुद्दे को दरकिनार किया जा रहा है। सवाल है कि क्या सरकार सयंमित भाषा में किसी जायज सवाल का जवाब देती है।
यदि संयमित और संस्कारों की भाषा में जनता की लगाई गई गुहार सरकार सुनने लगे तो किसी की जुबान भला संस्कार और सयंम की पटरी से क्यों उतरेगी। पर संयम की भाषा में जनता की भावनाओं का समझने की परंपरा किसी भी सरकार ने नहीं निभाई।
ताजा उदाहरण सामने है। 5 जुलाई विपक्षी दलों ने महंगाई के खिलाफ भारत बंद कराया। कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए, देश भर में बंद शांतिपूर्ण ढंग से सफल रहा। यह संयमित तरीके से बंद था, लेकिन केंद्र सरकार ने इस बंद को असफल करार दिया। कल्पना कीजिये, यदि इस बंद के दौरान देशभर में ङ्क्षहसा होती, तो क्या होता? तब कांग्रेस इसे जरूर सुनती है। उसे इस बात का निश्चय ही एहसास होता कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ाकर पहले ही महंगाई की बोझ से जनता की लचकी हुई कमर को तोडऩे वाला निणर्य लिया है। पर कांग्रेस सरकार ने सयंम की हर भाषा
चाहे वह सांकेति हो या फिर शाब्दिक उसे नकारा ही है। असंमित भाषा में अच्छे मुद्दे को उठाने पर हमेशा ही आदर्श भाषा की दुहाही देकर मुद्दे को ही खत्म करने की कोशिश की गई है।
देश की बहुसंख्यक जनता की असली जुबान क्या है, यह नई दिल्ली में रह कर नहीं जाना जा सकता है। दिल्ली के डीटीसी और ब्लूलाइन के बसों में जनता की असली जुबान सुनाई देगी। महंगाई समेत अनेक मुद्दों से जनता का मन सहज ही अक्रोश से भर गया है। उसे मालूम है, खुल कर सामने आने पर कुछ होना-जाना नहीं है, उल्टे उसे कानून की मार पड़ेगी। लिहाजा, शब्दों से भड़ास निकाले का विकल्प बेहतर है।
नितिन गडकरी ने क्या किया? नितिन गडकरी जैसे भाजपा में ढेरो नेता हैं। उनसे भी काबिल हैं, लेकिन वे कांग्रेस के शीर्ष पद तक नहीं पहुंच सकते हैं। क्योंकि कांग्रेस में तो गांधी परिवार का सिमरन चलता है। भाजपा की अंदरुनी कलह चाहे जो भी हो, कम से कम यहां शीर्ष पदों पर चेहरे तो बदलते ही हैं।
महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी से संबंधित एक पुस्तक में एक प्रसंग है। एक समय कांग्रेस ने हिंदी बोलने वालों को पार्टी का सदस्य बनाने पर रोक लगा दी थी। सदस्य बनने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया। क्योंकि तब के पार्टी सदस्यों को यह डर था कि कहीं हिंदी भाषी कांग्रेस का सदस्य बन कर अंग्रेजी बोलने वाले तथाकत्थित अभिजात्य कांग्रेसियों का कद छोटा न हो जाए। हालांकि यह रोक बहुत दिनों तक नहीं चली। लेकिन तब के कांग्रेस के अंदर की अभिजात्यवादी संस्कार आज भी मौजूद हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो युवा नेताओं के नाम पर कांग्रेस के पूर्व प्रभावशाली नेता व मंत्रियों के लाडलों को ही पार्टी टिकट नहीं देती। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में भी ऐसे ढेरों युवा हैं जिनमें देश को आगे ले जाने की बेहतरीन दूरदृष्टि और नेतृत्व कौशल है। लेकिन यह उनका दुर्भाग्य है देश के ऐसे युवाओं को कांग्रेस ही क्या किसी भी पार्टी में उन्हें मान्यता नहीं है। यदि मान्यता है तो पार्टी के सबसे निचले छोर पर केवल निष्ठा बनाये रखने की। कांग्रेस की नहीं देश का अभिजात्य वर्ग हमेशा ही आम आदमी को नकारती रहा है। भले ही आम आदमी के दम पर उसका प्रतिष्ठा कायम है। पिछड़ों में शरद यादव की प्रतिष्ठा है। वे बिहार के मधेपुरा जैसे पिछड़े इलाकों की जनता का जुबान जानते हैं। तभी तो उन्होंने गडकरी के जुबान का समर्थन किया। कोई तर्क देने वाला कह सकता है कि यदि कांग्रेस गलत ही है तो फिर उसकी सत्ता में वापसी ही क्यों होती है? यही तो असली राजनीति है। प्रतिकूल परिस्थियों को साम,दाम,दंड,भेद से उसे अपने अनुकूल कर लो। जीत पक्की है। इस इस नीति में गैर-कांग्रेसी दल मात खा जाते हों, तो
क्या कहा जाए।

बुधवार, जुलाई 07, 2010

न्याय नहीं मिला तो आंदोलन जारी रहेगा




नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ ने दिया विभागीय आयुक्त को ज्ञापन
दोषी पुलिसकर्मियों के निलंबन का मांग

नागपुर। नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के पदाधिकारी, सदस्यों व गैर पत्रकारों ने 5 जुलाई को भारतबंद का कवरेज कर रहे मीडियाकर्मियों पर लाठीचार्ज के मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित किए जाने की मांग को लेकर विभागीय आयुक्त कार्यालय के पास विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन का निर्णय मंगलवार को ही एक बैठक में लिया गया था। सुबह 12:30 बजे प्रदर्शन के दौरान भारी बारिश हो रही थी। लेकिन मूसलाधार बारिश में भी आक्रोशित मीडियाकर्मियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। उन्होंने काले फीते लगाकर भीगते हुए विरोध प्रदर्शन किया। मीडियाकर्मियों के गुस्से को पहले ही भांपकर पुलिस ने यहां तगड़ा बंदोबस्त किया था। एक डीसीपी, चार एसीपी समेत अनेक पुलिसकर्मी यहां चौकस थे। पुलिसकर्मियों की भीड़ मीडियाकर्मियों से ज्यादा नजर आई।

प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष शिरीष बोरकर ने कहा कि पुलिस ने मीडियाकर्मियों पर जो हमला किया है, वह नहीं सहा जाएगा। जब तक दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित नहीं किया जाता, तब तक हमारा आंदोलन ऐसे ही जारी रहेगा। 'दैनिक 1857Ó प्रधान संपादक एस.एन. विनोद ने कहा कि पुलिस ने मीडियाकर्मियों पर तब लाठीचार्ज किया जब वे अपनी सच्ची ड्यूटी निभा रहे थे। उनका यह बर्ताव गलत है। जब तक उन दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा। मीडियाकर्मियों पर हुआ हमला किसी भी सूरत में नहीं सहा जा सकता है।
मीडियाकर्मियों के विरोध प्रदर्शन को विदर्भ जनआंदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने भी समर्थन दिया। उन्होंने प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि पुलिस का यह व्यवहार निंदनीय है। दूसरे के सुख-दु:ख की खबर से कवरेज कर सरकार को जगाने वाले मीडियाकर्मियों पर पुलिस का यह व्यवहार अत्याचार है। उन्होंने मीडिया द्वारा किए जा रहे विरोध को जायज ठहराते हुए कहा कि विदर्भ के आदिवासी और किसानों का समर्थन मीडियाकर्मियों के साथ हैं। दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए।
रिपब्लिकन पार्टी के पार्षद प्रकाश गजभिये ने कहा कि भारत बंद को पूरी जनता का समर्थन था। यह बंद किसी एक पार्टी ने नहीं कराया था। प्रदर्शन के बाद मीडियाकर्मियों का जत्था विभागीय आयुक्त गोपाला रेड्डी के कार्यालय के अंदर पहुंचा। नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष शिरीष बोरकर ने भारतबंद के दौरान मीडियाकर्मियों पर हुए लाठी चार्ज के बारे में बताया। संघ के सचिव संजय लोखंडे ने लाठीचार्ज के दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबन का ज्ञापन दिया। विभागीय आयुक्त ने इस संबंध में जल्द ही कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार एस.एन. विनोद, महाराष्ट्र श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष यदु जोशी, तिलक पत्रकार भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रदीप मैत्र, वरिष्ठ पत्रकार जोसेफ राव, स्वदेश के संपादक विश्वास इंदुरकर, लोकशाही वार्ता के विनोद देशमुख, इंडिया न्यूज के विदर्भ ब्यूरो के प्रमुख राजेश तिवारी, दैनिक 1857 के चीफ रिपोर्टर संजय कुमार, नेशनल संदेश के सीनियर रिपोर्टर अभय यादव, राजेश बागड़े, सीएनईबी के कैमरामैन रविकांत कांबले, पुण्यनगरी के फोटो जर्नलिस्ट प्रशिक डोंगरे, संजय लचुरिया, देवेश व्यास, दैनिक भास्कर के छोटू वैतागे, विनोद झाडे, लोकशाही वार्ता के जीवक गजभिये, स्वदेश के सौरभ,लोकसत्ता के ज्योति तिरपुडे, स्वदेश के धीरज पाटिल, लोकमत के अविनाश महाजन, नवभारत के अभिषेक तिवारी, लोकमत समाचार के जगदीश जोशी, तरुण भारत के दिलीप दुपारे,
टाइम्स ऑफ इंडिया के फोटो जर्नलिस्ट रंजीत देशमुख और सुदर्शन समेत नागपुर के मीडिया संस्थानों के अनेक पत्रकार और फोटो जर्नलिस्ट उपस्थित थे।
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